________________
[ कल्याण-कलिका-प्रथम-खण्डे चक्रसंग्रह-दिनशुद्धिना विविध विभागोनुं निरूपण करी हवे अमो प्रासादादि मुहूर्तोपयोगी केटलांक उपयोगी चक्रो आपी पंचांग सुद्धि उपर आवी .
नागवास्तुचक्र-मुजादित्यनिबन्धेईशानतःसपैति कालसर्पा, विहाय सृष्टिं गणयेद् विदिक्षु। पश्चाद्गतिस्थंमुखमध्यपुच्छं, त्रिकं त्रिकं वैवृषसंक्रमादौ ॥३८
या वृषाद् गृहे सिंहात्, त्रिकं मीनात् सुरालये । जलाश्रये मृगाद्याच्च, शेषनागस्य संस्थितिः ॥३९॥
भाण्टी-शेषनाग वृषादि ३-३ संक्रांतिमां ईशान कोणथी सरके छे, विलोमक्रमथी पाछली तरफ गणतां वृष-मिथुन-कर्क संक्रां तिओमां ईशानमां मुख, वायव्यमां मध्य, नैऋतमां पुच्छ अने अग्निकोण खाली होवाथी रवात स्थान, ए ज रीते सिंह-कन्या-तुलामां एक विदिशा बदलतां अग्निकोणमां मुख, ईशानमां मध्य, वायव्यमां पुच्छ अने नैर्ऋते खातस्थान, वृश्चिक धनु, मकर, संक्रांतिमां नैर्ऋते मुख अग्निकोणे मध्य, ईशाने पुच्छ, वायव्ये खातस्थान अने कुंभ-मीन मेष संक्रांतिओमां वायव्ये मुख नैर्ऋते मध्य, अग्नेयीमां पुच्छ अने ईशानमा खातस्थान; आ क्रम प्रमाणे विवाहनी वेदीमां खातनो क्रम छे, घर, देवालय तथा जलाशयना खातने अंगे आ प्रमाणे जाणवूवृषथी वेदीमां, सिंहथी, गृहमां, मीनथी देवालयमां अने मकरथी जलाशयमां शेषनी स्थितिनो विचार करवो अर्थात् सिंह-कन्या-तुला आदि ३-३ संक्रांतियोथी गृहने अंगे, मीन-मेष-वृष आदि ३-३ संक्रांतियोना क्रमे देवालयने अंगे, मकर-कुंभ-मीन आदि ३-३ संक्रांतियोना क्रमे जलाशयने अंगे शेष, ईशानथी सर्पण सृष्टिक्रमथी गणी विलोम क्रमे मुख मध्य पुच्छ ज्यां आवतां होय ते विदिशाओने डोडी खाली पडेली विदिशामा खात करवू.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org