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मुहूर्त-लक्षणम् ] 'आरंभसिद्धि' आदि ग्रंथोमां " विपुलस्निग्धाश्च वक्रगाश्चान्ये" इत्यादि लेखोमा चक्रगामी ग्रहोने बलवान मान्या छे, पाकश्री नामक प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थकार तो सर्व ग्रहोनी वक्रावस्थामा मूल त्रिकोण तुल्य बल बतावे छे, हर्षप्रकाशकारे “वक्की पावो बली सुभो सिग्यो" आ जे लख्यु छे तेनो कोई आधार मले तेम नथी, लखवं तो एम जोईतुं हतुं के " सिग्धो पावो बली सुभो वक्की" अर्थात् पाप ग्रह शीघ्र होय त्यारे अने शुभ ग्रह वक्री होय त्यारे बलवान गणाय छे. स्वरशास्त्रनी पण ए ज मान्यता छे. ए विषयमा स्वरोदय शास्त्रनुं कक्तव्य आ प्रमाणे छेक्रूरा वक्रा महाराः, सौम्या वक्रा महाशुभाः । बलिष्ठाः स्युः शुभा वक्राः, कूरा वक्रा बलोद्गताः ॥३६॥
भा०टी०-क्रूर ग्रहो वक्री थतां महाक्रूर बने अने सौम्य ग्रहो वक्री होय त्यारे महाशुभ बने छ, वली सौम्य ग्रहो वक्री थतां बलिष्ठ बने छे अने क्रूर ग्रहो वक्री थतां बलहीन थई जाय छ, क्रूर छतां शनि बलवान होय त्यारे कंडक शुभ फल आपे छे, एथी विपरीत गुरु आदि सौम्य ग्रहो अतिचार गतिना थतां अशुभ फल आपे छे, ज्यारे ते ज सौम्यग्रहो वक्री थतां सुभिक्षता-समर्घतादि उत्पन्न करे छे, ए सर्व प्रतीत छे, आना परिणामे ज ज्योतिषीओए निम्नोक्त श्लोकगत फलनो निर्देश कर्यो छ
अतीचारगते जीवे, वक्रे भौमे शनैश्चरे । हाहाभूतं जगत्सर्वे, रुण्डमुण्डा च मेदिनी ॥ ३७॥
भा०टी०-गुरु अतीचारी अने मंगल तथा शनि वक्री होय त्यारे सर्वत्र जगतमा हाहाकार मचे छे ने पृथिवी धड-मस्तकथी छवाई जाय छे.
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