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[ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे होय ते उत्तम गणाय छे. तेमां उत्तमआय लाक्वा माटे एक आंगल वधारयो अथवा ओछो करवो. ___ अथवा प्रासादना चतुर्थांशमा तेनो दशमांश जोडतां के हीन करतां जे मान आवे ते माननी ते प्रासादमां प्रतिमा स्थापवी. अर्थात् स्वदशमांश युक्त चतुर्थांश माननी उत्तम, स्वदशांशहीन चतुर्थांश माननी कनिष्ठ अने वचला माननी मध्यम प्रतिमा होय छे.
प्रासादना पंचमांश जेटली प्रतिमा अतिहीनमाननी गणाय छे. सर्व धातुओनी, रत्ननी, स्फटिकनी, अने प्रवालनी प्रतिमाओने अंगे प्रासादमाननो नियम होतो नथी. गमे ते मानना चैत्यमा गमे ते माननी ए प्रतिमाओ प्रतिष्ठित करी शकाय छे.
प्रासादमा प्रतिमान स्थानप्रासादगर्भगेहाधे, भित्तितः पञ्चधाकृते । यक्षाद्याः प्रथमे भागे, देव्यः सर्वा द्वितीयके ॥३॥ जिनाऽर्कस्कन्दकृष्णानां, प्रतिमाश्च तृतीयके । ब्रह्मा चतुर्थके भागे, लिङ्गमोशस्य पञ्चमे ॥८४॥
भा०टी०-प्रासाद गर्भगृहना भित्ति तरफना अर्धना ५ भाग करवा, तेमां भीत तरफना प्रथम भागमां यक्ष आदि देवो, बीजा भागमा सर्व देविओ, त्रीजामां जिन, सूर्य, स्कन्द तथा कृष्णनी प्रतिमाओ, चोथा भागमां ब्रह्मानी प्रतिमा अने पांचमा भागमा (गर्भ मध्यमां) शिवलिंगनी स्थापना करवी.
दृष्टिस्थाननो विवेकबारशाखाष्टभिर्भाग-रध एकद्वितीयकैः । मुक्त्वैकमष्टमं भागं, यो भागः सप्तमः पुनः ॥८५।।
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