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प्रतिमा-लक्षणम् ]
२९३ तस्यापि सप्तमे भागे, 'गजत्वात्तत्र पातयेत्।। प्रासादे प्रतिमादृष्टिः, कर्तव्या तत्र शिल्पिभिः ॥८६॥
भा ०टी०-प्रासादना द्वारनी शाखाना एक, वे, आ क्रमे नीचेथी उपर सुधी ८ भागो करवा. तेमांथी उपरनो आठमो भाग छोडीने नीचेना सातमा भागना पण ८ भागो करी उपरनो आठमो छोडी मूल सातमाना सातमा भागमां गजाय होवाथी शिल्पिओए प्रासाद द्वारना ते स्थानमा प्रतिमानी दृष्टि पाडवी.
उपसंहारप्रतिमा लक्षणना संबन्धमा जेटलं लखाय तेटलं थोडुं छे, ए विषय ज एवो छे के एने वधु चर्चीये तेम ए वधारे गहन धनतो जाय छे, एथी सामान्य वांचनार माटे ए दुर्बोध वस्तु बनी जाय एवो भय छ, माटे हवे ए लेख पूर्ण करवो ज सारो छे.
प्रतिष्ठाकारक साधुओ, विधिकारक श्रावको अने मूर्तिकार शिल्पिओ; प्रतिमा संबन्धी शिल्पनो थोडो पण परिचय साधे अने नवी बनती प्रतिमाओमां एनो उपयोग करे एज आ प्रकरण लखवानो उद्देश छे.
१ पुस्तकान्तरमां " गजायस्तत्र " एवो पाठ छे. बनेनो भाव एक ज छे के सातमा भागमा “गजाय” छे.
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