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प्रतिमा-लक्षणम् ]
२९१ स्वजन, यान, वाहन, अने नोकर-चाकरोनी हानि थाय छे. तथा छत्र, श्रीवत्स, कानना भंगथी अनुक्रमे लक्ष्मी, मुख अने भाईओनो क्षय थाय छे.
घर अने प्रासादमा स्थापनीय प्रतिमान मानआरभ्यैकांगुलं बिवं, यावदेकादशांगुलम् । गृहेषु पूजयेद् बिंब-मूर्व प्रासादके पुनः ॥७८॥
भा०टी०-१ आंगलथी मांडीने ११ आंगल सुधीनी प्रतिमा घरमां पूजवी. एथी अधिक माननी प्रतिमा प्रासादमां (चैत्यमां)
पूजा .
घरमां पूजवानी प्रतिमा विषेनो विवेकप्रतिमा काष्ठ लेपाऽश्म-दन्तचित्रायसां गृहे । मानाधिका परीवार-रहितां नैव पूजयेत् ॥७९॥
भा० टी०-काष्ठनी, लेपनिर्मित, पाषाणनी हाथी दन्तनी बनेली, चित्ररुपी, लोहमयी प्रमाणमां ११ आंगलथी म्होटी अने परिकर विनानी प्रतिमा घरमा न पूजवी.
प्रासादमानथी प्रतिमामानप्रासादतुर्यभागस्य, समाना प्रतिमा मता। उत्तमायकृते सा तु, कार्यकोनाऽधिकांगुला ॥८॥ अथवा स्वदशांशेन, हीनस्याप्यधिकस्य वा। कार्या प्रासादपादस्य, शिल्पिभिः प्रतिमा समा ॥८१॥ अतिहीना तु याऽर्चा स्यात् , प्रासादपंचमांशके। सर्वेषामपि धातूनां, रत्नस्फटिकयोरपि । प्रवालस्य च बिम्बेषु, चैत्यमानं यदृच्छया ॥२॥ भाटी०-प्रासादना एक चतुर्थांश जेटली उंचाईमा प्रतिमा
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