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________________ ૨૮૨ [कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे व्याधि महोदरी कुर्याद् , हृद्रोगं हृदये कृशा। अंगहीना सुतं हन्यात् , शुष्कजंघा नरेन्द्रहा ॥५॥ पादहीना जनं हन्यात् , कटीहीना च वाहनम् । ज्ञात्वैवं कारयेज्जैनी, प्रतिमा दोषवर्जिताम् ॥१८॥ भा०टी०-प्रतिमा दोपयुक्त न बनाववी, केमके ते अशुभ फल आपनारी थाय छे. प्रतिमा जो रौद्राकृति-एटले भयंकर आकारनी होय तो प्रतिष्ठा करावनार गृहस्थनो नाश करे छे. दुर्बल अंगोवाली प्रतिमा द्रव्यनो क्षय करे छे. ढूंका अंगोवाली क्षय करे छे. चिपडी आंखोवाली दुःख देनारी होय छे. नेत्रहीना आंखोनो नाश करे छे अने हीनमुखवाली प्रतिमा अभोगिनी अर्थात् पूजाभोग प्राप्त करती नथी. ____ म्होटा पेटवाली प्रतिमा रोगने उत्पन्न करे छ, हृदयमां दुर्बल प्रतिमा हृदयना रोगो उत्पन्न करे छे. अंगहीन प्रतिमा पुत्रनो नाश करे छे अने शुष्क (गलेल) जांघवाली प्रतिमा देशना राजाने हणे छे. पग हीन प्रतिमा जन सामान्यने मारे छे अने कटिभागमा हीन प्रतिमा यान-वाहननी हानि करे छे. आ प्रमाणे दोषनुं फल जाणीने जैनप्रतिमाने दोष रहित बनाववी जोईये. अलाक्षणिक प्रतिमा विशे वास्तुसारनुं विधानउत्ताणा अत्थहरा, वंकग्गीवा सदेसभंगकरा । अहोमुहा य सचिंता, विदेसदा हवइ नीचुच्चा ॥५॥ विसमासण वाहिकरा, रोरकरऽण्णायदव्वनिप्फन्ना। हीणाहियंग पडिमा, सपक्खपरपक्खकट्टकरा ॥६॥ उड्ढमुही धणनासा, अपूइया तिरियदिट्टि नायव्वा। अइथडदिट्टि असुहा, हवइ अहोदिहि विग्घकरा ॥६१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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