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प्रतिमा-लक्षणम्]
૨૮૯ विकटाकारया ज्ञेयं, भयं दारुणमर्चया। अधोमुख्या शिरोरोग,-स्तथाधो नतयापि च ॥५४॥
भा०टी०-शास्त्रना ज्ञान विनाना शिल्पिए घडेलुं देखावमां सारं देखातुं पण दोषयुक्त एवं देवता, प्रतिबिंब शास्त्रना जाणकार पुरुषोए कदापि ग्रहण न करवू.
जेना सांधा बरोबर मलेला न होय एथी, घबरायेल अथवा भयभ्रान्त चहेरावाली, वांकी वळेली, नीची धूनवाली, अस्थित अर्थात् जेनां अंगोपांग यथास्थान न होय एवी, प्रमाणथी अधिक उंची, कागडानी जंघा जेवी पातली जांघवाली, प्रत्यंगो जेना प्रमाणथी हीन होय एवी, भयंकर आकारवाली, छातीना भागमां गांठवाली एटले के प्रमाणथी अधिक बहार निकलेली छातीवाली अने मध्यभागमां नीची बलेली एवी दोषयुक्त देवप्रतिमाओ बुद्धिमाने न भराववी.
'अश्लिष्ट संधि'-प्रतिमा करावनारनुं मरण, 'विभ्रान्ता'स्थान च्युति, 'वक्रा'-कलह कंकाश, 'नता' अवस्थानी हानि, 'अस्थिता' द्रव्यनाश, 'उन्नता' भय तथा हृदयरोग, 'काकजंघा' नित्य विदेश भ्रमण, 'प्रत्यंगहीना' संतानहीनता, 'विकटा' दारुण भय, 'अधोमुखी' माथानो रोग अने 'मध्यग्रंथि' प्रतिमा पण मस्तक रोगने आपनारी होय छे. माटे उक्त दोपोवाली प्रतिमानो त्याग करवो.
_प्रतिष्ठाकल्पोक्त प्रतिमा लक्षणहीनतासदोषार्चा न कर्तव्या, यतः स्यादशुभावहा । कुर्याद्रौद्री प्रभो शं, कृशांगी द्रव्यसंक्षयम् ॥५५॥ संक्षिप्ताङ्गी क्षयं कुर्या-चिपिटा दुःखदायिनी। विनेत्रा नेत्र विध्वंसं, हीन वक्त्रा च (त्व) भोगिनी ॥५६॥
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