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प्रतिमा-लक्षणम् ]
भाण्टी०-उंचा मुखवाली प्रतिमा धन हरे, वांकी गर्दननी स्वदेशनो भंग करे, नीचा मुखवाली अने नीची उंची अनुक्रमे चिन्ता अने भ्रमण करावे.
विषम आसनवाली प्रतिमा व्याधि करनारी, अन्यायोपार्जित द्रव्यवडे बनेली दुर्भिक्ष करनारी अने प्रमाणथी हीन या अधिक अंगवाली प्रतिमा स्वपक्ष तथा परपक्षने कष्ट देनारी थाय छे, ऊर्ध्वमुखी धननो नाश करे छ, तिरछी नजरवाली पूजाने पामती नथी. अतिशय स्तब्धदृष्टि (अक्डदृष्टि)वाली अशुभ करनारी अने नीची दृष्टिवाली प्रतिमाने विघ्नकारिणी जाणवी. शिल्परत्नाकरोक्त प्रतिमागत शुभाशुभ रेखाओ
शुभ रेखाओ-(शार्दूल०) नन्द्यावर्त-वसुन्धरा-धर-हय-श्रीवत्स-कूर्मोपमाः, शंख स्वस्तिक-हस्ति-गो-वृषनिभाः शक्रेन्दु-सूर्योपमाः। छत्र-स्रग्-ध्वज-लिंग-तोरण-मृग-प्रासाद-पद्मोप्रमाः वज्राभा गरुडोपमाश्च शुभदा रेखा कपर्दोपमाः॥२॥
भाण्टी०-पाषाण, काष्ठ आदि द्रव्योवडे बनावेली प्रतिमामां जो नन्द्यावर्त पृथ्वी, पर्वत, अश्व श्रीवत्स, कच्छप, शंख, स्वस्तिक, हाथी, वृषभ, इन्द्र, चन्द्र, सूर्य, छत्र, पुष्पमाला, वजा, शिवलिंग, तोरण, हरिण प्रासाद (देवमंदिर अथवा महेल ) कमल, वज्र, गरुड अने कपर्दी; आ पैकीना कोईपण पदार्थना जेवो आकार प्रतिमामां रेखाओ वडे बनेलो दृष्टिगोचर थतो होय तो शुभ फलदायक जाणवो.
अशुभ रेखाओहृदये मस्तके भाले, ह्यसयोः कर्णयोर्मुखे । उदरे पृष्ठसंलग्ने, हस्तयोः पादयोरपि ॥६३॥
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