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________________ प्रतिमा-लक्षणम् ] २५५ ते पण प्रत्येक मनुष्यथी नहि पण एना अधिकारी विद्वान् मूर्तिकार द्वारा ज अमोए आवा मनुष्योना हितने लक्ष्यमां राखीने ज आ प्रकरण आलेखवानुं साहस कर्यु छे. मूर्ति निर्माण विषयने स्पर्शता अनेक मौलिक ग्रन्थो उपलब्ध छे, छतां अमो ते सर्वनी चर्चा नहि करीये, अमारी प्रस्तुत विषय 'जिन प्रतिमा लक्षण' सुधीज मर्यादित छे, तेमां उत्तर भारतमा पूर्व जे शिल्पने आधारे जिन प्रतिमाओ बनती हती, तेनाज आधारो लेवानो निर्णय होइ 'जयसंहिता'ने मूल आधार बनावी ' अपराजितपृच्छा, जिन प्रतिमा-विधान, वास्तुसार, बृहत्संहिता, प्रतिमामान-लक्षण अने नवताल मूर्ति विधान' आदि ग्रन्थोना आधारे अमो जिन प्रतिमा-लक्षणने अंगे मलती उपयोगी हकीकतोनुं वर्णन करशुं. प्रथम जयसंहिताना आ विषयना प्रकरणने अक्षरशः आपी अन्ते बीजा ग्रन्थोने आधारे मानांक कोष्ठको आपीने आ विषयने यथासंभव स्पष्ट करवानो प्रयास करशुं. ___उपयुक्त ग्रन्थो पैकीना पहेला बे ग्रन्थो शिल्पना प्राचीन आकर ग्रन्थो छे. आ बनेमां जिनप्रतिमाने उद्देशीने खास अध्यायो छे. ___'जिन-प्रतिमा-विधान 'नो उतारो शिल्परत्नाकरमा एना संग्राहके आप्यो छे, ए प्रकरणनो आधार ग्रन्थ जाणी शकायो नथी. चोथो ग्रन्थ ठक्कुर फेरु कृत वास्तुसार छे, आमां 'बिंब परीक्षा' नामर्नु जैन प्रतिमाने अंगे लखायेलं खास प्रकरण छे, बीजाओ करतां ठक्कुर फेरुए आमां घणी वातो स्पष्ट करी छे. बृहत्संहितामा 'प्रतिमा' निर्माण संबन्धी एक अध्याय छ, जे गुप्तकालीन शिल्पना निरुपणमां महत्त्वनो भाग भजवे छे. प्रतिमामान-लक्षण एक स्वतन्त्र प्राचीन निबन्ध छ, आमा बुद्ध प्रतिमाना शिल्पनुं प्रतिपादन छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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