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परिच्छेद - १२ जिनप्रतिमा लक्षणप्रतिमा हि द्विसंस्थाना, आसीनोर्ध्वस्थितात्मिकाः । तासां भागक्रमश्चैव प्रवेशा निर्गमास्तथा ॥ ३१ ॥ अङ्गलक्षणभेदाश्च, दोषाश्च विविधाः पुनः । सर्वमेतत् परिज्ञाय, प्रतिमाः कारयेन्नवाः ॥३२॥ |
भा०टी० - जिन प्रतिमाओ वे प्रकारना आकारनी होय छे. बेठी जे पद्मासनस्थ कहेबाय छे. उभी जे कायोत्सर्गिक ए नामथी ओलखाय छे. आ प्रतिमाओना दैर्ध्य विस्तारना मानांकी, अंग विभागना प्रवेशो, निर्गमो, अंगगन लक्षणोना भेदो अने प्रतिमाना निर्माणमा थता अनेक दोषोः ए सर्व समजीने नवीन प्रतिमा कराaat जोईये.
प्रतिमा - लक्षणनी दुर्बोधता -
प्रतिमा - लक्षणनुं ' वर्णन ए कुशल मूर्तिशास्त्रज्ञनुं काम छे, प्रतिमा -निर्माताने प्रतिमाने अंगे जाणवानी महत्व पूर्ण वातो, जेवी केमूर्तिना अंगोपांगोनी लंबाई, पद्दोलाई, निर्गम-प्रवेश, पिंड, परिधि आदि विषयोना ज्ञाननी प्रथम जरुरत पडे छे. आज-कालमां बनती प्रतिमाओ प्राचीन प्रतिमाओनी बराबरी नथी करी शकती एनुं कारण ए विषयोनुं अज्ञान ज छे. उदयमानना १०८ अथवा ५६ आंगलोनो सरवालो मात्र भेलवी देवाथी ज प्रतिमामां लाक्षणिकपणुं आवी जतुं नथी पण एना अंग-प्रत्यंगोनां मानो, तेओनां एक वीजा वच्चेनां अंतरो, प्रत्येक अंग उपांगोना निर्गम-प्रवेशो आदिनुं यथार्थ ज्ञान होय तोज प्रतिमामां खरी लाक्षणिकता उत्पन्न करी शकाय छे,
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