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________________ २१४ [कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे माने करवो कह्यो छे, ५ हाथथी मांडी १० हाथ सुधीना प्रासादोने दोढा माननो मण्डप करवान विश्वकर्माजीए विधान कयु छे, ४ हाथना प्रासादे पोणा बे गणा विस्तारनो अने ३ हायना प्रासादे बे गणा विस्तारनो मंडप करवो, त्रण हाथथी ओछा मानना लघुप्रासादमां मंडपना स्थाने तेनोज भेद चोकी करवी, चोकी चोरस वा अष्टास्र पण होय, तेनो विस्तार शुकनासना स्तंभोने अनुसारे करवो, मंडप वितानवालो अथवा संवरण वालो होय, उंचो तेना विस्तार मानथी दोढो करवो, प्रासादथी 'द्विगुणमानवाला मंडपने' फरतां अलिन्द्रो वडे तेना विस्तारथी बे गणा विस्तारवालो करी शकाय अने बमणा उपरना मानना मंडपोने २-२, ३-३ अथवा ४-४ अलिन्दो देइने विस्तृत करी शकाय छ, आ अलिन्दो (चोकियो)वाला मंडपोने वितानवाला अथवा संवरणवाला करो पण आने फरती चोकियोनी नीचेनी जे भूमि चोकिओए पोतपोताना पदना भोगवडे बहेंची नांखी छे, तेने मूल मंडपनो विस्तार समजीने ते उपर मंडपर्नु सामरण के मंडपनो घुमट लाववो नहि, पण मूल मंडपना विधान प्रमाणे ज ते अलिन्दनी चोकिओ उपर पोताना विस्ता. रना अर्धमाने उंची सामरणो अथवा घुमटीओ करवी अने मंडपना आमलसारानी उंचाई शुकनासना उदय जेटली करवी, तेथी ओछी न करवी अने अधिक पण न करवी. शुकनासनी उंचाईमूलप्रासादशिखर-मुच्छ्ये यत्प्रकल्पितम् । छाद्योवें स्कन्धपर्यन्त-मेकविंशतिभाजितम ।।३।। अङ्कदिशारुद्रसूर्य-त्रयोदशान्तमुत्सृजेत । शुकनासस्य संस्थानं, छाद्योचे पञ्चधोन्नतम् ॥३३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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