SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मा. प्रासाद-लक्षणम् ] २१५ तेन मानेन पटान्तं, मण्डपोर्ध्वमुत्सृजेत् । ता च न कर्तव्य-मधास्थं नैव दूषयेत् ॥५३४॥ भा०टी०-छाजाना मथाराथी स्कन्ध (बांधणा) पर्यन्त मूल प्रासादना शिखरनी ऊंचाइ जेटली करवा धारी होय तेना २१ भाग करी तेवा ९ भाग, १० भाग, ११ भाग, १२ भाग अथवा १३ भाग उपर, एम ५ प्रकारनी ऊंचाइए शुकनासर्नु संस्थान होइ शके, अने मंडप शुकनासनी ऊंचाइना माने पाटना मथाराथी ऊंचो ला जइने छोडवो, शुकनासथी मंडप ऊंचो न करवो, कदापि नीचो रहे तो दोष नथी. प्रासादा मण्डपाश्चैव, जगतीशालेऽतिक्रमात् । अन्योन्यं च यदा ग्रस्ता, महादोष इति स्मृतः॥५३५।। मण्डपेषु च प्रासादे, ग्रस्ते तु स्वामिविग्रहः । जगत्यां चैव प्रासादा, ग्रस्तास्तत्र प्रजाभयम् ॥५३६॥ शालाभिर्मूलप्रासादो, ग्रस्तः स्याद्दोषकारकः । तदग्रस्तस्तु कर्तव्यः, स्वगोत्रेऽकलहो रिपोः ॥५३७।। प्रजाग्रस्तो यथा राजा, प्रासादोऽथान्यपट्टकैः । जगती-शाला-विधिस्तत्र, मूलसूत्रानुसारतः॥५६८॥ मूले ग्रस्ते तदाग्रस्ती, जगतीप्रासादौ परस्परम् । कुरुतस्तावन्धकारं, यथा राहुर्दिवाकरे ॥५३९॥ भा०टी०-प्रासादो, मंडपो, जगती अने शाला, अनुक्रमे अथवा अन्योन्य (एकबीजाथी) ग्रस्त थाय तो आ प्रमाणे महादोष कह्यो छे मंडपोथी प्रासाद ग्रस्त थाय तो (लोपाय, नीचो रहे) तो बनापनारा, धणीने क्लेश करावनार थाय, जगतीधी प्रासाद प्रस्त थाय Jain Education International. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy