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[कल्याण-कलिका-प्रथमखने ०॥ भागनी ग्रीवा (गलं), १३ भागनी बे कणिओ अने ३ भागनुं ऊंचं बीजोरं (डोडलो) करवु ए शुभदायक छे, ए कलशनी ऊंचाईना अंगविभागो कह्या. हवे विस्तारने सांभल ! पद्मपत्रनो विस्तार ३ भागनो करवो, तेना कंदनो विस्तार २ भागनो अने अंडक (पेट) घडाना आकारर्नु ६ भागे विस्तृत करवू, ग्रीवा मध्यमां २ भागना विस्तारे अने कणिओ ४ भागे विस्तारमा करवी 'बीजो नीचेथी २ भागे अने उपर १॥ भागे विस्तारमा करवु, आ प्रमाणे सर्व अंगो पोतपोताना माने ऊंचा अने विस्तृत उत्तम लक्षण युक्त करवां, आ प्रमाणे सर्वेच्छापूरक कलशनुं प्रमाण सूत्र कह्यु, आ लक्षण नागर प्रासादना कलशनुं छे.
प्रकारान्तरे कलशना अंग विभागो-(१) अत ऊर्ध्व पुनश्चान्य, प्रवक्ष्येऽहमनुक्रमम् । पूर्ववच समुत्सेधो, विस्तरः पूर्वकल्पितः ॥४५४॥ पद्मपत्रनिभाकारा, त्रिपदा पद्मपत्रिका। कर्णिका पदमेकं तु, सपादः पद्मसंभवः ॥४५५॥ द्विभागं चाण्डकं कुर्याद् , वृत्ताकारं सुलक्षणम् । ग्रीवा पादोनभागा स्याद्, भागाध चार्कपट्टिका ॥४५६।। लतिने चैव कर्तव्या, अर्धाशे पद्मपत्रिका। त्रिभागं बोजपूरं स्याद्, विकसितपद्माकृति ॥४५७।। उच्छ्यः कथितश्चैत्थं, विस्तरं शृणु सांप्रतम् ।
भाण्टी-आ पछी वली कलशना संबंधमां अंगोनो बीजा क्रम कहुं छु, कलशनी ऊंचाईना अने विस्तारना प्रथमनी जेम ज अनुक्रमे ९ अने ६ भागो कल्पवा. ऊंचाईना नव भागोमांथी नीचे ३ भागनी पद्मपत्रिका कमलपत्रना आकारनी करवी, १ भागनी कर्णिका अने ११ भागनो कमल संभव (पत्र) करवो, ते पछी २
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