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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे __ अर्थ-चंडिकादेवीने सामे माता यक्ष के क्षेत्रपाल भैरवने बेसाडवा. तात्पर्यार्थ ए छे के जे जे देवो जेना हितैपिओ होय ते तेनी सामे बेसाडवा सारा छे. " जिनेन्द्रस्य तथा यक्ष-देवाश्च जिनमातृकाः। आश्रयंति जिनं सर्वे, ये चोक्ता जिनशासने ॥"
अर्थ-जिनेन्द्रना यक्षदेवो, जिनमाताओ अने बीजा जे कोइ जिनशासनमा जैन देवो कहेला छे ते सर्व जिनना आश्रयमा रही शके छे. "वर्जयेदहतः पृष्ठ-मग्रं तु शिवसूर्ययोः। पाच तु ब्रह्म-विष्ण्वोच, चण्ड्याः सर्वत्र वर्जयेत् ॥"
अर्थ-जिननो पृष्ठ वेध, शिव सूर्यनो अग्रवेध, ब्रह्मा विष्णुनो पार्श्व वेध अने चंडीनो सर्व वेध वर्जयो.
"प्रसिद्धराजमार्गस्य, प्राकारस्यान्तरे पि वा। ___ स्थापयेदन्यदेवांश्च, बहिर्वास्तुकवर्जितम् ॥"
अर्थ-जो बे प्रासादो वच्चे प्रसिद्ध राजमार्ग पडतो होय अथवा तो एक वास्तुना कोटने आंतरे बाह्य भागमां बीजं वास्तु होय तो त्यां बीजा देवनी प्रतिमा स्थापन करी शकाय छे. "वेध्याधकयोर्वास्त्वोस्त्यत्तवा द्विगुणमन्तरम् । यथेष्ट सकलं कार्य, कृतं तच्छुभशान्तिकृत् ॥”
अर्थ-वेध्य अने वेधक वास्तुओनी बच्चे वास्तुथी बमणी भूमिनु अंतर होय तो त्यां वेध उपजतो नथी, त्यां इच्छानुसार सर्व कार्य थइ शके छे अने त्यां करेल कार्य शुभ अने शांतिदायक थाय छे.
(४) भिन्न दोषो" मंडलं जालकं चैव, कीलकं शुषिरं तथा । छिद्रं संधिश्च काराश्च (कारस्य),महादोषा इति स्मृताः॥"
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