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[ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे अधिकैः कर्मभिर्जेया, चन्द्रशाला धरा शुभा॥ प्रमाणं नागरी कृत्वा, वराटी कीर्तिता बुधैः ॥ सपत्रवल्लिकास्तंभ-पंक्तिहृद्यत्र जंघिका ॥ मेग्वलान्तरपात्राणि, द्राविडी सा निगद्यते ॥ कालिंगी गौडिका तुल्या, मश्चिकापादचन्द्रिका॥ इत्युक्ता किश्चिदुद्देशात्, स्थूलरूपेण शास्त्रतः॥ नागरी मध्यदेशे तु, सौख्यदा वर्तना मता। वाराट्याद्याः, स्वदेशेषु, अन्येष्वन्याश्च दुषिताः॥" ___ अर्थ-मेरुथी गरुडपर्यन्तना प्रासादोमां नागरी वर्तना कहेली छे, लाटी वर्तना नागरी सरखी ज होय छे, पण लाटी वर्तना लाकडाना काममां वर्ताय छे. नागरी करतांये आ वर्तनाथी काष्ठनां चैत्योमा बहु ज जी' कोतर काम कराय छे अने आ वर्तना प्रमाणे बनावाता काष्ठनिर्मित चैत्योनी आगल चंद्रशाला मूकाय छे. नागरीने ज प्रमाण करीने विद्वानोए वाराटी वर्तना कही छे, अर्थात् वाराटी पण नागरीथी बहु जुदी नथी पण आटली विशेषता होय छे के-आमां स्तंभो उपर तथा जांघमां पल्लव युक्त वेलडीओ खोदाय छे, अने ज्यां मेखलाओमां अंतर पत्रो होय ते वर्तना द्राविडी कहेवाय छे, कालिंगी तथा गौडी ए बने वर्तनाओ मलती ज होय छे, फरक मात्र ए छे के कालिंगीना मंची थरमा एक चतुर्थांश भागे चंद्रिका होय छे, आम संक्षेपमा स्थूलरुपे वर्तनाओगें शास्त्र थकी निरूपण कयु, नागरी वर्तना मध्यदेशमां हिमालय विन्ध्याचल बच्चेनो प्रदेशमा वर्ताय छे, अने उक्त देशमां ते सुखदायक मनाय छे वाराटी आदि पोतपोताना देशमां शुभ गणाय छे ज्यारे बीजा देशोमां ते दृषित गणाय छे.
आ उपरथी शिल्पकारोए समजी लेवू घटे के नागरी वर्तना ज
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