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प्रस्तावना]
चतुरस्रायता ये च. तथा वृत्तायतास्तु ये । एकद्वाराः स्मृताः सर्वे, प्रासादा लक्षणान्विताः॥ मुक्त्वा लिंगं महेशस्य, तथा च कमलासनम् । सर्वासां प्रतिमानां तु, प्रासादाः समुदाहृताः॥"
अर्थ-ब्रह्माजीए चतुरस्र अने चतुर प्रासाद ब्रह्माजीने माटे कह्यो छे, बीजा कोइने माटे नहिं.
चतुरस्र अने एकद्वार प्रासाद सर्व देवो तथा शिवलिंगने माटे कहेल छे. एक मुखलिंग, शिवनी प्रतिमा तथा शिवने माटे वृत्तच्छंदनो प्रासाद कहेलो छे बीजा कोइ देवने माटे नहिं. चतुर्मुख लिंगने माटे वृत्त चतुर्मुख प्रासाद कह्यो छे, आ प्रासाद पण शिवने माटे ज बने छे बाजा कोइने माटे नहिं, एकद्वार अष्ठात्र प्रासाद विष्णु तथा शिवने होय छे अने चतुर्मुख अष्टास्त्र प्रासाद शिवने तथा ब्रह्माजीने करी शकाय छे. लंब चतुरस्र प्रासादो तथा वृत्तायत छंदना एकद्वारना लक्षणयुक्त प्रासादो शिवलिंग तथा ब्रह्मागे प्रतिमाने छोडीने सर्वदेव प्रतिमाओने माटे शुभदायक कहेल छे.
(२) देशदेशनी वर्तनाओ
आजकालना आ तरफना शिल्पिओ दक्षिण, पूर्व आदि दरेक देशमा जइने जिन प्रासादो बनावी आवे छे, पण तेओ वर्तना एक ज नागरी जाणे छे अने तेज वर्तना प्रमाणे प्रासादोनुं शिल्पकाम करे छ जे बराबर नथी, जे देशमा जे वर्तना चालती होय ते देशमा तेज वर्तना प्रमाणे काम करवू जोइये, शिल्पनी कुल छ वर्तनाओ छे कई वर्तना कया देशमा वर्तवी जोइये ए विषयमां लक्षणसमुच्चय कार कहे छे" मेर्वादिगरूडान्तेषु, नागरी वर्तनोदिता। नागरी सदृशी लाटी, किन्तु सा दारुनिर्मिता ॥
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