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________________ प्रासाद-लक्षणम् ] १६१ अंचिता, ३ भागनी कुंचिता अने ४ भागनी शस्या नामनी कोली करवी. प्रासाद विस्तारना चोथा भागनी १ मध्यस्था कोली, त्रीजा भागनी २ जी भ्रमा अने प्रासादना प्रमाणथी अर्धा भागनी ३ जी संभ्रमा नामनी कोली करवी. अग्रे कोली कपोलं तु, शुकनासस्तु नासिका । सान्धारे स्तंभरेखा च कर्तव्या मध्यकोष्ठ के ॥ ३७५ ॥ भ्रमणी बाह्याभित्तिश्च क्रमात्संख्या प्रकल्पयेत् । शृंगोरुशृंगप्रत्यंगै - गणयेदण्डकानि च ॥ ३७६ ॥ कर्णे तवांगं तिलकं कुर्यात् प्रासादभूषणम् । कर्ण रथं प्रतिरथं, सुभद्रं प्रतिभद्रकम् ॥ ३७७ ॥ सलिलान्तरमार्गेषु, शुद्धान्येवांगसंख्यया । इहैवांगप्रमाणेन, सपादं शृंगमुच्छ्रये ॥ ३७८ ॥ स्कन्धस्यादये घण्टा, सर्वकामफलप्रदा । " भा०टी० - प्रासादने आगे कोलं, ते प्रासादना 'कपोल' रूप अने शुकनास 'नासिका रूप होय छे. सांधार प्रासादोमां मध्यकोष्ठकना स्तंभथी रेखा उठाववी, अने भ्रमणी तथा बाह्यभींतने प्रासादनी मानसंख्यामां परिगणित करवी. Jain Education International ܕ शृंगो, उरुशृंगो अने प्रत्यंगोथी अंडको गणत्रा अने कणी, तर्वांग, तिलक; ए बधां प्रासादना भूषण रूपे करवां, कोण, रथ, प्रतिरथ, सुभद्र, प्रतिभद्र; आ बधां प्रासादनां अंगो गणाय छे, जलमार्गों बच्चे आ अंगोनी संख्या स्पष्ट जणाय छे, अर्थात् प्रत्येक बे अंगो वच्चे पाणीतार छोडवाथी उक्त अंगो एक बीजाथी जुद जणाइ आवे छे, आ अंगोना मानानुसारे उपर शंगो बनावत्रां, अने प्रत्येक शृंग पोताना विस्तारथी सवायुं उंचुं करवुं. स्कंधना विस्तारना अर्धा भाग जेटलो आमलसारानो उदय करवो शुभ फलदायक छे, ૨૧ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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