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________________ १६२ [कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे प्रहाराशं पुनर्दद्यात्, पुनः शृंगाणि कारयेत् । शंगे शृंगे च प्रासाद, विभक्तमिव कारयेत् ॥३७९॥ समस्तानामधोभाग, कुर्याच्छाद्यविभूषितम् । अधःशृंगपक्षभागे, ऊर्वशृंगव रोद्गमः ॥ ३८० ।। उरुशृंगं यदा लुप्तं, रेखा-कर्ण-जलान्तरैः। तत्र कारयितुः पीडा, कर्तुश्चापि महद् भयम् ॥३८१॥ भा०टी०-जे अंगो उपर शंगो उठावयां होय तेनी उपर प्रथम प्रहार थरो देवा अने पछी शृंगो करवा, फरि प्रहार देवा अने फरि शंगो करवां भिन्न भिन्न शृंगोमां प्रासादने वहेंची देवु, समस्त शंगोनो निचलो भाग प्रथम छाजाओथी विभूषित करी उपर प्रहार लगाडी ते उपर शंगो बनावबां. नीचेना शंगोनी एक बाजुथी उपरनां शृंगो उठावयां. रेखा, कर्ण अने जलमार्गोथी जो उरुशंग लोपाय तो करावनारने पीडा अने करनारने पण भयर्नु कारण बने छे. मूलशिलात उदये, पर्यन्तकलशान्तके। विभक्ते विंशतिभाग-रध ऊर्व प्रकल्पयेत् ॥३८२॥ अष्टभिर्भागैयेष्ठः, साधैरष्टभिर्मध्यमः। कनिष्ठो नवभिर्भागै-स्त्रिधा मण्डोवरो मतः ॥३८३॥ शेषा ये ऊर्ध्वभागास्तैः, कर्तव्यः शिखरोदयः । इदं मानं समुद्दिष्ठं, प्रोक्तं वै वास्तुवेदिमिः ॥३८४॥ भा०टी०-खरशिलाथी कलश पर्यन्तना प्रासादना उदयना २० भागो करी नीचे उंचना विभागो कल्पवा, नीचेना भागमा ८-८॥ अने ९ भाग ऊंचो अनुक्रमे ज्येष्ठ, मध्यम, अने कनिष्ठ मंडोवरी करवो, उपर जे भागो रहे तेटलो ऊंचो शिखरनो उदय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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