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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे ४थामां लक्ष्मी नारायणनी, ५मामां वाराहनी, ६ट्ठामा लेपचित्रनी, ७मामां शासनदेवोनी, ७माना ७मा भागमां वीतराग देवनी, ८मामां चंडिका तथा भैरवनी, ९मामां चमरधर-छत्रधर देवोनी दृष्टि स्थापकी अने दशमा भागने दृष्टि रहित राखवो अथवा १०मा भागमां गंधों अने राक्षसोनी दृष्टि स्थापन करवी.
ठक्कुर फेरुनी दृष्टिस्थान संबन्धी आ मान्यताने कोइ प्राचीन ग्रन्थनो आधार छे के केम ? ए विचारणीय वस्तु छ, आ विषयमां अपराजितनी मान्यता फेरुना ध्यानमां न होय एम पण कही शकाय तेम नथी, कारण के फेरु पोते ज आगल चालीने ८ भागनी चर्चा करे छे, ते लखे छ के
भागट्ठ भणंतेगे, सत्तम-सत्तंसि वीयरागस्स । गिहदेवालि पुणेवं, कीरइ जह होइ वुढिकरं ॥३४८॥
भा टो०-कोइ द्वारना ८ भाग करीने सातमाना सातमा भागमां वीतरागनी दृष्टि स्थापवानुं कहे छे, पण आम घर दहेगसरमा करवु जोइये के जेथी वृद्धिकारक थाय. आचार्य वसुनन्दिनी दृष्टिस्थान विषयक मान्यता
दिगम्बराचार्य वसुनन्दीनी दृष्टिस्थान विषयक मान्यता उपर्युक्त बंने मतोथी जुदी पडे छे, तेओ द्वारना ९ भाग करी सातमाना ७मा भागमां दृष्टिस्थान माने छ; जुओविभज्य नवधाद्वारं, तत्षड्भागानधस्त्यजेत् । उर्ध्व द्वौ सप्तमं तद्वद्, विभज्य स्थापयेद् दृशम् ॥३४९॥
भा०टी०-द्वारना ९ भाग करी ६ नीचे अने २ ऊपर छोडवा पछी ७माना एज रीते ९ भाग करीने (सातमा भागमां) दृष्टिने स्थापन करवी.
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