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प्रासाद-लक्षणम् ]
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के अने ३२ समभागो विपरीत स्थानो छे, बधां विषम स्थानो शुभ अने विपरीत स्थानो अशुभ होय छे, दृष्टिदोषना विपाकथी स्थानभ्रष्टता अने धनहानि थाय छे। नगरमां, पुरमां ग्राममां, देशमां, तीर्थमां के तपोवनमां दृष्टिदोषरूप प्रचण्ड वायुथी जे उखडी जाय छे ते फरीने उगतुं नथी, माटे दृष्टि शुभ स्थानमां राखत्री.
वाहनदृष्टि
वली देवना वाहननी दृष्टि प्रतिमाना पगथी कटिभाग सुधी उंची राखवी, एथी ऊंची न राखवी.
ठक्कुर फेरुनुं दृष्टिविधान
दृष्टिस्थानना संबन्धमा वास्तुसारकर्ता ठक्कुर फेरुनो मत उपयुक्त मान्यताथी जुदो पडे छे, फेरु द्वारोदयना १० भाग करीने दृष्टस्थान निश्चित करे छे. जे नीचेनी गाथाओथी जणाशे.
दस भाग कयदुवारं, उद्देवर - उत्तरंगमज्झेणं । पढमंसि सिवदिट्ठी, बीए सिवसन्ति जाणेह ||३४४ || सयणासणसुर तइए, लच्छीनारायणं उत्थे य । वाराहं पंचमए, छसे लेवचित्तस्स || ३४५ ॥ सासणसुर सत्तमए, सत्तमसत्तंसि वीयरागस्स । चंडिय भइरव अडमे, नवमिंदा चमरछत्तधरा ॥ ३४६ ॥ दसमे भाए सुन्नं, अहवा गंधव्वरक्खसा चेव । हिडाउ कमि विजह, सयलसुराणं च दिट्ठी' अ ||३४७ ||
भा०टी० - उंबरा - उत्तरंग बच्चेना द्वारोदयना १० भाग करीने सर्व देवानां दृष्टिस्थानो निश्चित करवां, नीचेथी अनुक्रमे १ ला भागे शिवनी दृष्टि, २जामां शिवशक्तिनी, ३जाम शेषशायी देवनी,
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