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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे द्वारमानोनो उपयोगविमाने भूमिज मान, वराटेषु तथैव च । मिश्रके लतिने चैव, मानं शस्तं च नागरम् ॥२९५॥ दशहस्तात्परं चैव, सान्धारे कामदं तथा । विमाने नागरच्छन्द, कुर्याद्विमान-पुष्यके ॥२९६॥ नागरं शोभनं द्वारं, तथा सिंहावलोकने। वलभ्यां भूमिजं मानं, द्राविडं फांसनाकृतौ ॥२९॥ धातुजे रत्नजे चैव, दारुजे च रथारहे। यश्छन्दश्चैव प्रासादो, द्वारं तन्मानकं भवेत् ॥२९८॥
भाल्टी०-विमान तेमज वराट जातिना प्रासादोनां द्वारो भूमिज माननां करवां, मिश्रक तथा लतिन जातिना प्रासादोर्नु द्वारमान नागर जातिना मानन करवू सारुं छे, तथा दश हाथथी अधिक मानना सान्धार-प्रासादो, नागरछन्दना विमानो, विमानपुष्यको, तथा सिंहावलोकनो; आ बधा प्रासादोनां द्वारो नागर माननां करवां ए शोभास्पद छे.
बलभी प्रासादk द्वार भूमिज माननुं करवु, फांस आकारना शिखरोवाला नपुंसक प्रासादो, धातुना प्रासादो, रत्नना प्रासादो, काष्ठना प्रासादो अने रथारुह प्रासादो; आ बधाने द्राविडमानने द्वार करवू जोइये.
जे प्रासाद जे छन्द उपर बनेल होय तेज जाति माननुं द्वार ते प्रासादने करवु योग्य गणाय छे.
द्वार शाखाओकोइ पण घर के प्रासादना द्वारने अमुक संख्यामां शाखा होवी जोइये एवो शास्त्रमा नियम छ, १ थी ९ शाखाओ वालां द्वारो होय
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