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________________ प्रासाद-लक्षणम् ] उच्छ्यार्धन विस्तारं, शुभं स्यात्तु कलाधिकम् । भूमिजे द्वारमानं च, प्रयुक्तं वास्तुवेदिभिः ॥२९१॥ भाटी०-एक हाथना भूमिज प्रासादने १२ आंगल उंचुं द्वार होय, पांच हाथ सुधीना प्रासादोने एज प्रमाणे प्रतिहस्ते १२-१२ आंगलनी उदयमा वृद्धि करवी, ए पछी ७ हाथ सुधो प्रतिहस्ते ९-९ आंगलनी, ९ हाथ सुधी ६-६ आंगलनी अने ९ पछी ५० हाथ सुधीना प्रासादोना द्वारोदयमा प्रतिहस्ते २-२ आंगलनी वृद्धि करवी. द्वारनी उंचाईना अर्धभागे तेनो विस्तार करवो शुभ छ, विस्तास्मां १ कला अधिक होय तो पण श्रेष्ठ छ; भूमिज प्रासादनु द्वारमान वास्तुवेदि विद्वानोए उपर प्रमाणे जणाव्युं छे. द्राविडद्वारमान-अपराजित पृच्छायाम्एकहस्ते तु प्रासादे, द्वारं विद्याद्दशांगुलम् । दशांगुलं प्रतिकरं, यावत् षड्हस्तकं भवेत् ॥२०२॥ अत उर्ध्व दिक्करान्तं, वृद्धिः पञ्चांगुला भवेत् । द्वयंगुला च ततो वृद्धिः, पञ्चाशडस्तकावधि ।।२९३॥ पृथुत्वं च तदर्धेन, शुभं स्यात्तु कलाधिकम् । द्राविडे द्वारविस्तारः, प्रयुक्तो वास्तुवेदिभिः ॥२०४॥ भा०टी०-एक हाथना द्राविड प्रासादk द्वार १० आंगलना उदयवालं करवु अने ६ हाथ सुधीना प्रासादोना द्वारोनुं मान ए ज रीते प्रतिहस्ते १०-१० आंगलनी वृद्धिए करवू, ए पछी १० हाथ सुधी प्रतिहाथे ५ आंगलनी अने ११ थी ५० हाथ सुधी प्रतिहाथे २ आंगलनी वृद्धि करवी. द्वारनो विस्तार एना उदयथी अर्ध प्रमाणमा राखवो, १ कला-अधिक विस्तार होय तो शुभ छ, वास्तुशास्त्रना विद्वानोए द्राविडद्वार विस्तार उपर प्रमाणे कह्यो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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