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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे ज्यारे अपराजितकारे मंडोवराना १४४ भागोमां खुराना पण ५ भागो सामेल गण्या छे, छतां ज्यां ज्यां उदयनो प्रसंग आव्यो छे, खुराने तेमां गण्यो नथी, पण वैराट, प्रहार थरोने गण्या छे. प्रासादमंडनमां खुराथी छाजा पर्यन्तनोज मंडोवरो अने तेनी उंचाईने ज उदय मान्यो छे, एटले खुराने ग्रहण करीने छाजा उपरना पूर्वोक्त २ थरोने छोडी दीधा छ, आजना शिल्पिओ पण उदय अने मंडोवरानो हिसाब प्रासादमंडन प्रमाणे ज गणे छे, जे अपराजितथी विरुद्ध जाय छे. भूमिजप्रासादना मंडोवरामां अपराजित पृच्छाकार कुंभाथी छाधान्त 'शीर्षोदय' करवानुं विधान करे छे, अने त्यां खुराना थरने पीठमां गणवानो स्पष्ट निर्देश पण करे छे, जुओ
भूमिजे चैव प्रासादे, वराटे च विमानके । विस्ताराच समुत्सेध-पर्यन्तं चाद्यभूमिका ॥२४७॥ शंगकूटोदयं त्यक्त्वा, तन्मध्ये तु विचक्षणैः । शीर्षादयो विधातव्य-श्छाद्यान्तं कुंभकादितः ॥२४८।।
भा०टी०-भूमिज, वराट, अने विमान जातिना प्रासादना विस्तार जेटला उदयमां प्रथम भूमिका पूरी थाय छे, शृंग अने कूटोदयने उपर छोडीने विचक्षण शिल्पिए कुंभाथी छाजा सुधीना मध्यभागमां शीर्षोदय (प्रासादना मस्तकनी उंचाई ) करवो.
ए पछी थरवालाओना भागांक लखता ग्रन्थकार कहे छे
" खुरकं पीठ मध्ये तु,” अर्थात् 'खुराने पीठमां गणी कुंभादि स्तरोमां उदयना भागांक गणवा' ____ उपरना विवेचनथी समजाशे के अपराजित नागर जातिना मंडोवरानी उंचाईमां खुराने गणनामां लेता हता पण प्रासादनो उदय तो ते कुंभाथी ज आरंभ करता अने प्रहार सुधीना थरोने उदयमां गणी लेता भूमिजादि प्रासादोना मंडोवरामां ते खुराने तेम छाजा
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