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प्रासाद-लक्षणम् ]
भा०टी०-१, २, ३, ४, ५, हाथना प्रासादोनो उदय अनुक्रमे ९, ७, ५, ३, १ आंगल सहित १, २, ३, ४, ५ हाथनो जाणवो, अर्थात् १ हाथे ? हाथ ९ आंगल, र हाथे २ हाथ ७ आंगल, ३ हाथे ३ हाथ ५ आंगल, ४ हाथे ४ हाथ ३ आंगल अने ५ हाथे ५ हाथ १ आंगल, प्रासादनो उदय करवो. आ मान्यता अपराजितनी साथे अक्षरशः मले छे पण ए पछीनी हस्तवृद्धिनो नियम अपराजितनी मान्यतानी साथे मेल खातो नथी.
फेरुना मते ६ थी ५० हाथ सुधीना प्रासादोना उदयनी वृद्धिनो एक ज नियम छे के प्रतिहस्ते १४ अंगुलनो हास करवो, एटले केप्रतिहाथे १० आंगलनी ज उदयमा वृद्धि करवी, आ नियमानुसारे ६ थी २० हाथ सुधीना प्रासादोनुं उदयमान २. ३, ४, ५, मा प्रकारना उदय मानथी ओठं आवे छे,
ठक्कुर फेरुए आ उदयमां विराट अने प्रहार थरोनो उदय संमिलित कर्यो छे, ए मूचक वस्तु छे, अपराजितकार स्थले स्थले 'प्रहारान्तं ' ए शब्द लखीने एम सूचित करे छे के पूर्व नागरजातिना प्रासादोनो उदय प्रहार थरना मथाळा सुधी गणातो हतो अने तेनो आरंभ कुंभाथी कगतो हतो.' फेसए खुराथी प्रारंभ कर्यो ए विचारणीय छे. आ उपरथी अनुमान थाय छे के ते वरखते खुरानी उंचाई मंडोवरामां ज नहि पण प्रासादना उदयमां पण प्रविष्ट थवा मांडी चुकी हशे.
___उदयमानमा मतभेदअपराजित पृच्छाना मते आ उदय कुंभाथरथी छाजानी उपर आवता प्रहारथर सुधाना गण्या छ, पातुसारमा ठक्कुर फरुए ‘खुरकुंभ' इत्यादिथी शरु करी ‘वइराड पहार तेर थर' अहियां सुधीनो मंडोवरो मान्यो छे, फेरुए 'खुरा'ने मंडोवरामां गण्यो छे
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