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[कल्याण-कलिका-प्रथमखरे - भा०टी०-गृह अने गृहस्वामीनी राशिना स्वामीग्रहो परस्पर मित्र होय अथवा एक होय तो षडष्टक नवपंचम अथवा वीजी बारमी राशिनो दोष नथी, कारण के ग्रहो पोताना अथवा मित्रना क्षेत्रना पालक होवाथी पीडा करता नथी.
चन्द्रगृहाग्रे च यदा चन्द्रः, कुरुते वेश्मनः क्षयम् । राट्चौराग्निभयं घोरं, चन्द्रो वै पृष्टिमागतः ॥१४०॥ धनं धान्यं क्षमारोग्यं, कुरुते दक्षिणे स्थितः। श्री-स्त्री-पुत्रानुत्तमांश्च, चन्द्रो वै उत्तरे स्थितः ॥१४१॥
भा०टी०-जो चन्द्रमा घरने सामे आवे तो घरनो नाश करे, घरनी पाछल आवे तो राजभय, चोरभय अने अग्निभय आदि घोर भय उत्पन्न करे, जो घरनी दक्षिण दिशामा रह्यो होय तो धन, धान्य, पृथिवी अने आरोग्यनो करनारो थाय अने जो उत्तरदिशामा रह्यो होय तो लक्ष्मी, स्त्री अने उत्तम पुत्रोनी प्राप्ति करावे.
चन्द्रनो वासो जाणवानी रीतिसप्तोर्ध्वाः स्थापयेद्रेखाः, पुनर्भिन्नाश्च सप्तभिः। रेखा प्रोतानि साभिजिन्नक्षत्राण्यष्टविंशतिः॥१४२॥ कृत्तिकां दद्यादेशान्यां, शेषाणि प्रदक्षिणे। गृहक्षेत्रोक्तमृक्षं च, तत्र चन्द्रमुदीरयेत् ॥१४३॥
भा०टी०-७ रेखाओ ऊभी खेचवी, पछी आडी ७ रेखाओ बडे भेदवी, आम ७ ऊभी अने ७ आडी रेखाओ खेंची सप्तशलाका चक्र बनावq, ए पछी ईशान खूगानी ऊभी रेखा उपर 'कृत्तिका' नक्षत्र लखवू अने ते पछी बाकीनी रेखाओ उपर अनुक्रमे रोहिण्या
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