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________________ प्रासाद-लक्षणम् ] दि शेष अभिजित सहित २८ नक्षत्रो लखवां, जाणे के रेखाओना छेडाओमां परोव्यां होय तेम लखीने जोवु. निश्चित करेल घरनुं नक्षत्र ज्यां हशे त्यां चन्द्रनो वासो हशे. गृहनक्षत्र अने गृहारंभर्नु दिन नक्षत्र ए बंने नक्षत्रो घरद्वारने सामे अथवा पाछळ आवतां होय तो ते दिवसे घर बनाववानो कार्यारंभ कदापि न करवो. गृहनक्षत्र डावू-जमणुं होय छतां दिननक्षत्र पण सामे-पाछळ आवतुं होय तो ते दिवसे बनतां सुधी काम न करवू. देवालयमां वास्तुचन्द्र नेमज दिनचन्द्र सामे होय तो श्रेष्ठ गणाय छे. . व्ययनक्षत्रे वसुभिर्भक्ते, यच्छेषं व्ययमादिशेत् । अष्टौ व्ययास्तथा प्रोक्ता, आयेष्वष्टसु योजिताः॥१४४॥ आयाश्च कथिताः पूर्व, व्ययानां लक्षणं शृणु । एकैकस्यायसंस्थाने, व्ययोऽत्र त्रिविधः स्मृतः ॥१४॥ समो व्ययः पिशाचश्च, राक्षसस्तु व्ययोऽधिकः । व्ययो न्यूनो यक्षश्चैव, धन-धान्यकरः स्मृतः ॥१४६॥ भा०टी०-नक्षत्रनी संख्याना अंकने ८ नो भाग देतां जे अंक शेष रहे तेटलामो व्यय कह्यो छे. कुल आठ व्ययो कह्या छे, जे आठ आयोनी साथे योजायेला छे. आयो पूर्व कया छ एटले व्ययना संबन्धमा हवे सांभळ ! एक एक आयनी साथे व्यय त्रण प्रकारनो बने छे, आय समान व्यय ते पिशाच व्यय' कहेवाय छे, आयथी अधिक व्यय होय ते 'राक्षस व्यय' कहेवाय छे अने आयथी ओछो व्यय ते 'यक्ष व्यय' गणाय छे, ए यक्षव्यय धनधान्यनो करनारो छे. अनायव्ययकर्तार, आयहीना व्ययाऽधिकाः । व्ययाधिका विनश्यन्ति, अधिरेणैव सांप्रतम् ॥१४७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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