________________
प्रासाद-लक्षणम् ]
भवेद् द्वादशभिर्विप्रः, क्षत्रियो नवभिस्तथा। षडाशिभिर्भवेद् वैश्य,-स्त्रिभिः शूद्रः प्रशस्यते ॥१३॥
भाण्टी-हवे चार वर्णने योग्य राशिओ कहुं छु. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अने शूद्र; आ चार वर्णों पैकीना प्रत्येक वर्ण माटे ३-३ राशि श्रेष्ठ कहेल छे. कर्क वृश्चिक मीन राशिमो ब्राह्मणने श्रेष्ठ छे, मेष सिंह धनु क्षत्रियने शुभ, वृष कन्या मकर वैश्यने श्रेष्ठ अने मिथुन तुला कुंभ ए त्रण शूद्रने श्रेष्ठ छे. ब्राह्मण बारेय राशिओथी श्रेष्ठ छे, क्षत्रिय नव राशिओथी, वैश्य छ राशिओथी अने शूद्र पोतानी त्रण राशिओथी ज श्रेष्ठ छे. आशय ए छे के उच्च वर्णवालाने नीच वर्णनी राशिवाला घरो शुभ छे पण नीच वर्णवालाने उच्चवर्णनी राशिवालां घरो सारां नथी.
राशिकूटषडष्टके ध्रुवं मृत्युः, प्रीतिः स्यात् समसप्तमे। अनिष्टं पञ्च-नवमे, पुष्टिदश-चतुर्थके ।। १३७॥ तृतीयैकादशे मैत्री, द्वितीय-द्वादशे रिपुः । राशयः षइविधा एव,-मन्योन्यं पति-वेश्मनोः ॥१३८॥
भा०टी०-घर अने घर स्वामीनी राशि परस्पर छठी आठमी होयतो गृहस्वामीन मृत्यु थाय, परस्पर सातमी होय तो प्रीतिकारक, परस्पर नवमी पांचमी होय तो.अनिष्टकारक, परस्पर चोथी दशमी होय तो पुष्टिकारक, परस्पर त्रीजी अग्यारमी होय तो मैत्रीकारक अने परस्पर बीजी बारमी होय तो शत्रुताकारक जाणवी. आम घर अने घरस्वामिनी राशियोना छ संबन्धो बने छे, ते पैकीना त्रण अशुभ संबन्धवाली घरनी राशि वर्जनीय छे.
वेश्मपत्योर्भवेच्चैव, ग्रहमैत्री परस्परम् । . न पीडयन्त्यात्मक्षेत्रं, स्नेहिनः क्षेत्रपालकाः ॥१३९॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org