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वास्तुमर्मोपमर्मादि-लक्षणम् ]
राजवल्लभना मत मुजब वास्तुशयनप्रकार.
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जय इन्द्र
सूर्य सत्य भृश आकारा
आप चत्म
सावित्रअनेसविता
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असरानाकरुण पर
__आ बे चित्रोमा जोतां देवताओना नामोमां थोडोक भेद छे. तेमज अर्यमा, विवस्वान् , मैत्र अने पृथ्वीधरने राजवल्लभमा छ छ पद आपेलां छे. ज्यारे बृहत्संहितामां परिधिमा रहेला जयादि देवोने बे बे पद आपेलां छे, तेथी आकृतिमां थोडोक भेद पडे छे.
समपद वास्तुओनी संख्या पण १६ नी छे. ते नीचे प्रमाणे
४-१६-३६-६४-१००-१४४-१९६-२५६-३२४-४०८ - ४८४-५५६-६७६-७८४-९००-अने १०२४ पदवास्तु आ जातिना समपदवास्तुपदोमां वास्तुपुरुषर्नु शयन. पूर्वमां मम्लक उने पश्चिममां पगवालं होय छे. एम दाक्षिणात्यपद्धतिना ग्रंथो ऽभियान
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