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________________ ५६ [ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे करे छे. एना फलितार्थरूपे ज नीचे प्रमाणेना उल्लेखो दृष्टिगोचर थाय छे. जेमके एकाशीतिपदस्येश-दिग्विभागाश्रितं शिरः। माहेन्द्रीसंश्रितं विद्यात् , चतुःषष्टिपदस्य तु ॥११॥ भाटी०-एकाशीतिपदवास्तुमा ईशानमा वास्तुपुरुषर्नु मस्तक रहे छे. ज्यारे चतुःषष्टिपदात्मकवास्तुमा पूर्वदिशामां वास्तुपुरुषर्नु मस्तक रहे छे, एम जाणवू. उत्तरभारतीयशलीना शिल्पग्रंथोमां आ मान्यतानुं निरूपण अमारी नजरे पडयं नथी. नेम उपर जण वेल वास्तुपदोनी संख्या पण ही उत्तरपद्धविना योनां अमने उपलब्ध थइ नथी. अपराजितपृच्छामा मात्र १० वास्तु दोनां नामोनो उल्लेख मळे छे. पाछळना ग्रंथो पंकी वास्तुमंडनआदिमा १ पद थी १००० पद सुधीना वास्तुपदो होवानो निर्देश छ, एक विशेष निरूपण नथी. एथी समपढ़वास्तुमा वान्पुरुपना मस्तकला स्थान विषे उत्तरभारतीयपद्धतिनी भी मान्यता छ, एनो खुलासो मलतो नथी. आवी स्थितिमा आविषयमा अधिक लखg असामयिक गणाशे. निर्वाणकलिकामां आदेशल मर्मपरिज्ञान' ने अंगे अमारे महावंशो, वंशो, अनुवंशो, सिंगो, रज्जुओ, नाडिओ, म अने वास्तुपुरुपना अंगप्रत्यंगोनो परिचय आपको पड्यो छे. निर्वाणकलिकामा जे तिर्यकको रेखाओने 'उर्ध्ववंश' नाम आप्यु छे, तेने बीजा ग्रंथोमां' सिग' कहींने ओळवावी छे. निर्वाणकलिकानी रज्जुओने ग्रंथांतरोमां — अनुवंश' ए नाम आप्युं छे. कोष्टको पाडवा माटे दोरायली उभी आडी रेवाओने 'वंश' अने तिर्य रेखाओने 'नाडि ' ए नामोए उल्लेखी छे. उभी आडी रेखाओ पैकीनी मध्यनी ३-३ रेखाओने ६४ पदवास्तुमां अने २-२ रेखाओने ८१ पदमा ‘महावंशो' तरीके ओळखावेल छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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