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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे
केटलोक मतभेद धरावे छे. लगभग बधा शिल्पशास्त्रो वास्तुपुरुषने 'अधोमुख' पडेलो पाने छे. ज्यारे उक्त ग्रंथ तेने 'उत्तान' एटले के चत्तो पडेलो माने छे. आना परिणामे आपणे एना जे जे पदोमां जमणा अंगो मानीये छीये, ते ते पदोमां आ ग्रंथनी मान्यता प्रमाणे डाबा अंगो आवे छे अने डाबाना स्थाने जमणा अंगो आवे छे. ए सिवाय बीजा पण मतभेदो उक्त ग्रंथमां दृष्टिगोचर थाय छे, पण तेनी चर्चानुं आ उपयुक्त स्थल नथी.
वर्तमानमां प्राचीन अने आधारभूत मनाता बृहत्संहिता तथा वास्तुराजवल्लभ आग्रंथोमां वास्तुशयनप्रकार नीचे प्रमाणे बतावेलोछे.
बृहत्संहिताकारना मत मुजब वास्तुशयनप्रकार. शिल्पी पर्जय जय इन्द्र सूर्य सत्य श तात
सत्य
भुजंगाअदिति विति
बलाबला
तथा क्षत | यम
नया वृक्षता यम गया
ब्रह्मा ब्रह्मा बा
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Boomen
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