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________________ ५. सयंसंबुद्धाणं' (स्वयंसंबुद्धेभ्यः) (महेशानुग्रहमतम् -) (ल०)-एतेऽप्यप्रत्ययानुग्रहबोधतन्त्रैः सदाशिववादिभिस्तदनुग्रहबोधवन्तोऽभ्युपगम्यन्ते 'महेशानुग्रहाद् बोध-नियमौ' इतिवचनात् । (पं०)-'अप्रत्ययानुग्रहबोधतन्त्रैरिति,' 'अप्रत्ययो' हेतुनिरपेक्षात्मलाभत्वेन महेशः, तस्य 'अनुग्रहो' =बोधयोग्यस्वरूपसम्पादनलक्षण उपकारस्तेन 'बोधः' = सदसत्प्रवृत्तिनिवृत्तिहेतुर्ज्ञानविशेषस्तत्प्रधान स्तन्त्र' =आगमो येषां ते तथा तैः, 'सदाशिववादिभिः' ='ईश्वरकारणिकैः, तन्त्रमेव दर्शयति-'महेशानुग्रहाद् बोधनियमभावि'ति, 'बोधः' उक्तरूपो, 'नियम'श्च=सदसदाचारप्रवृत्तिनिवृत्तिलक्षणः, बोधनियमादिति तु पाठे बोधस्य 'नियमः' =प्रतिनियतत्वं तस्मात् । ___ अतः यह सिद्ध बात है कि आगम-अर्थको प्रथम कहनेवाले श्री तीर्थंकर भगवान होते हैं वे भी योग्य जीवों को धर्म में प्रवेश कराने वाले होने के कारण परंपरा से उपकारक हैं। ‘परंपरा से उपकारक' के दो अर्थ हैं : (१) परंपरासे यानी साक्षात् नहीं, किन्तु व्यवधान से उपकारक; अर्थात् जीवों में धर्म-कल्याण की योग्यता उत्पन्न करने के कारण उपकारक । जीवों में धर्म आने के लिए पहले योग्यता आनी चाहिए। यह योग्यता आत्मा का एक प्रकार का नया परिणमन यानी परिणाम है, जो कर्म के क्षयोपशम से होता है। आज तक जिन कर्मो के उदय से आत्मा में अयोग्य परिणाम बने रहते थे, अब तीर्थंकर के उपदेश सुनने से उनका क्षयोपशम या उपशमन हो जाता है। इससे आत्मा में योग्य परिणाम होने द्वारा धर्म प्रादुर्भूत हो सकता है। तो यह आया कि परमात्मा से जीवों में धर्म-कल्याण का सर्जन योग्यता प्रादुर्भूत होने से हुआ, अतः वे परम्परा से उपकारक हुए। (२) दूसरा अर्थ यह है कि परंपरा से माने अनुबन्ध से उपकारक, अर्थात् अपना अपना शासन जहां तक चले वहां तक उपकार करनेवाले तीर्थंकर होते हैं, वहां तक जीवों को धर्म-शासन द्वारा सुदेवगति, सुमनुष्यगति वगैरह कल्याण संपादन करानेवाले होते हैं। इस प्रकार अरिहंत परमात्मा तीर्थ करनेवाले सिद्ध हुए। ५. 'सयंसंबुद्धाणं' महेशानुग्रह का मत अब सदाशिववादी अर्थात् ईश्वरवादी मानते है कि सदाशिव यानी महेश कि जो अप्रत्यय है अर्थात् किसी कारण-सामग्रीसे पैदा न होते हुए सदा स्वतन्त्र अस्तित्व रखते हैं इनके अनुग्रहसे ही, इनकी कृपासे ही, जीवों को बोध हो सकता है। वे जीवों में बोध की योग्यता संपादित करने का उपकार मानते हैं। सदाशिववादी के शास्त्रमें कहा है कि 'महेशानुग्रहाद् बोधनियमौ' । महेशके अनुग्रहसे ही जीव बोध और नियम पा सकता है। 'बोध' का अर्थ है सद् आचार में प्रवृत्ति और असद् आचारसे निवृत्ति करने में कारणभूत ज्ञान-विशेष। 'नियम' का अर्थ है, सद् आचार में प्रवृत्ति, और असद् आचार से निवृत्ति । जीव अनादि काल से इन दोनों से शून्य हैं; तो इसमें इनकी प्राप्ति के लिए योग्यता निष्पन्न होनी चाहिए, और ये महेश के अनुग्रह से ही हो सकती है; तीर्थंकर को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001721
Book TitleLalit Vistara
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size11 MB
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