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(ल० - पारगयाणं परंपरगयाणं -) एते च संसारनिर्वाणोभयपरित्यागेन स्थितवन्तः कैश्चिदिष्यन्ते, 'न संसारे न निर्वाणे स्थितो भुवनभूतये । अचिन्त्यः सर्वलोकानां चिन्तारत्नाधिको महान् ॥१॥' इति वचनात् । एतन्निरासायाह 'पारगतेभ्यः', पारं = पर्यन्तं संसारस्य प्रयोजनवातस्य वा गताः पारगताः, तथाभव्यत्वाक्षिप्तसकलप्रयोजनसमाप्त्या निरवशेषकर्तव्यशक्तिविप्रमुक्ता इति यदुक्तं भवति, एतेभ्यः ।
एते च यदृच्छावादिभिः कैश्चिदक्रम सिद्धत्वेनापि गीयन्ते, यथोक्तम् - 'नैकादिसङ्ख्याक्रमतो वित्तप्राप्तिर्नियोगतः । दरिद्रराज्याप्तिसमा, तद्वन्मुक्तिः क्वचिन्न किम् ॥' इत्येतद्व्यपोहायाह 'परम्परगतेभ्यः' । परम्परया ज्ञानदर्शनचारित्ररूपया, मिथ्यादृष्टिसास्वादनसम्यग्मिथ्यादृष्ट्यविरतसम्यग्दृष्टिविरताविरतप्रमत्ताप्रमत्तनिवृत्त्यनिवृत्तिबादरसूक्षमोपशान्तक्षीणमोहसयोग्ययोगिगुणस्थानभेदभिन्नया, गताः परम्परगताः, एतेभ्यः । सिद्धाणं बुद्धाणं, पारगयाणं परंपरगयाणं । लोयग्गमुवगयाणं नमो सया सव्वसिद्धाणं ॥१॥
अर्थः-सिद्ध, बुद्ध, पारगत, परंपरागत, और लोकाग्रप्राप्त, ऐसे समस्त सिद्धों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ। इसकी व्याख्या :
'सिद्ध' अर्थात् सित = बंधे हुए, ध्मात = जल गए हैं जिनके, तात्पर्य, अनेक भवों के बंधे हुए कर्मइन्धन जला दिए हैं जिन्होंने, वे 'सिद्ध' हैं। आगे 'नमो' पद आता है इसको यहां जोड़ देने से 'सिद्धाणं नमो' - सिद्धों को मैं नमस्कार करता हूँ, यह अर्थ हुआ। अब सामान्यत: सिद्ध तो कर्मसिद्ध आदि कई होते हैं; जैसे कि :कम्मसिप्पे य विज्जा य मंते जोगे य आगमे । अत्थ-जत्ता-अभिप्याए तवे कम्मक्खए इय ॥'
अनेकविध सिद्ध :
बार बार अति अभ्यास से किसी कृषि आदि कर्म में निष्णात सिद्धहस्त हुआ पुरुष 'कर्मसिद्ध' कहलाता है, शिल्प में निष्णात 'शिल्पसिद्ध' प्रज्ञप्ति आदि विद्या वाला 'विद्यासिद्ध' गारुडीमंत्रादि वाला 'मंत्रसिद्ध' चूर्णादि-मिश्रण प्रयोग से पादलेप या नेत्राञ्जनादि द्वारा जल के उपर चलना, अदृश्य होना, इत्यादि में निष्णात ये 'योगसिद्ध; स्वनामवत् आगमशास्त्र के परिचित ये 'आगमसिद्ध'; तत्त्व के पदार्थों में सिद्ध - विद्वान ये 'अर्थसिद्ध'; दीर्घ एवं शीघ्र प्रवास में पारंगत ये 'यात्रासिद्ध'; दूसरों के अभिप्राय यथार्थ समझ लेने में निष्णात ये 'अभिप्रायसिद्ध'; कड़ी तपस्या में कर्मठ ये 'तपः सिद्ध'; और सर्वकर्मों का क्षय कर मुक्त हुए ये 'कर्मक्षयसिद्ध'; इत्यादि कई प्रकार के सिद्ध होते हैं, इसलिए उनमें से कर्मसिद्धादि यहां ग्राह्य नहीं हैं किन्तु कर्मक्षयसिद्ध ही ग्राह्य हैं, इन कर्मसिद्ध आदि का निषेध करने के लिए कहा 'बुद्धाणं'।
'बुद्ध' अर्थात् अज्ञान और मोहनिद्रा में जब जगत सोया हुआ था, तब अन्य के उपदेश के बिना ही मोहनिद्रा का त्याग कर जीव - अजीव आदि तत्त्व का प्रकाश प्राप्त करने वाले, सर्वज्ञ - सर्वदर्शी स्वरूप ज्ञानी; उन्हें में नमस्कार करता हूँ। वैसे सिद्ध कर्मसिद्धादि नहीं होते हैं।
'पारगयाणं' :
अब कई एक लोगों का कहना है कि 'ऐसे सिद्ध-बुद्ध जीव संसार और मोक्ष दोनों का त्याग कर रहे हुए हैं' । उनका शास्त्र है, -
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