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________________ (ल० - धायइसंडे... धम्माइगरे-) तथा धातकीनां खण्डानि यस्मिन् स धातकीखण्डो द्वीपः, तस्मिंश्च । तथा जम्ब्वा उपलक्षितस्तत्प्रधानो वा द्वीपो जम्बूद्वीपः, तस्मिंश्च । एतेष्वर्द्धतृतीयेषु द्वीपेषु महत्तरक्षेत्रप्राधान्याङ्गीकरणात् पश्चानुपूर्कोपन्यस्तेषु यानि भरतैरावतविदेहानि । प्राकृतशैल्या त्वेकवचननिर्देशः द्वन्द्वैकवद्भावाद् वा भरतैरावतविदेह इत्यपि भवति; तत्र । 'धर्मादिकरान् नमस्यामि' - दुर्गतिप्रसृतान् जीवान्... इत्यादिश्लोकोक्तनिरुक्तो धर्मः; स च द्विभेदः श्रुतधर्मश्चारित्रधर्मश्च । श्रुतधर्मेणेहाधिकारः तस्य च भरतादिषु आदौ करणशीलाः तीर्थकरा एव । (ल०-) आह, 'श्रुतज्ञानस्य स्तुतिः प्रस्तुता, कोऽवसरस्तीर्थकृतां ? येनोच्यते धर्मादिकरान् नमस्यामी 'ति । उच्यते, श्रुतज्ञानस्य तत्प्रभवत्वात् अन्यथा तदयोगात् । पितृभूतत्वेनावसर एषामिति । एतेन सर्वथा अपौरुषेयवचननिरासः । (पं०-) 'एतेनेत्यादि । 'एतेन' = धर्मादिकरत्वज्ञापनेन, 'सर्वथा' = अर्थज्ञानशब्दरूपप्रकाशन - प्रकारकात्स्न्येन, 'अपौरुषेयवचननिरासः' = न पुरुषकृतं वचनमित्येतन्निरासः । 'कृतः' इति गम्यते। पुक्खरवरदीवड्ढे धायइसंडे य जंबुद्दीवे य । भरहेरवयविदेहे धमाइगरे नमसामि ॥१॥ पुष्करवरद्वीपार्द्ध धातकी खण्ड एवं जंबूद्वीप में भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्र में धर्म के आदिकर अर्थात् तीर्थंकरो को मैं नमस्कार करता हूँ। व्याख्या:--'पुक्खरवरदीवड्डे', - पुष्कर अर्थात् पद्मों से वर माने श्रेष्ठ, ऐसा जो द्वीप यह पुष्करवरद्वीप। उसका अर्द्धभाग अर्थात् मानुषोत्तर नाम का पर्वत जो कि १६ लक्ष योजन प्रमाण चौड़े उस द्वीप के ठीक बीच में है, उसके इस और रहा हुआ अर्द्धभाग यह हुआ पुष्करवरद्वीपार्द्ध; उसमें । __(हम जिसमें रहते हैं, यह जंबूद्वीप वर्तुलाकार १ लक्ष योजन का लम्बा चौडा है, इसके चारों ओर लवणसमुद्र २ लक्ष योजन चौडा चूडी-आकार का है; उसके चारों और धातकी खण्ड ४ लक्ष योजन चौडा चूडीआकार का है; उसके चारों और कालोदधिसमुद्र ८ लक्ष योजन चौडा चूडी-आकार का है; उसके चारों और पुष्करवरद्वीप १६ लक्ष योजन चौडा चुडी-आकार का है; उसके बीच में चूडी-आकार का मानुषोत्तर पर्वत पड़ता है। इस पर्वत के इस तरफ याने मात्र ढाई द्वीप में मनुष्यों की बस्ती है। प्रत्येक द्वीप में कर्मभूमि एवं अकर्मभूमि हैं। अकर्मभूमि अर्थात् जहां कृषि व्यापार आदि कर्म एवं धर्म कर्म नहीं होते हैं, सिर्फ कल्पवृक्ष से इष्ट प्राप्ति हो जाती है। कर्मभूमि १५ हैं, - ५ भरत, ५ ऐरवत, ५ महाविदेह । वहां कृषि आदि कर्म भी होते हैं और तीर्थंकर आदि होने से धर्म कर्म भी चलता है।) 'धायइसंडे... धम्माइगरे नमसामि' पदों के अर्थ: तथा धातकी खण्ड अर्थात् धातकी नामके वृक्षों के वन जिसमें हैं, वह धातकीखण्ड द्वीप, उसमें । एवं जम्बू वृक्ष से उपलक्षित, अथवा जम्बू वृक्ष प्रधान है जिसमें वह जम्बूद्वीप, उसमें भरहेरवयविदेहे' - इन ढाई द्वीपों में जो भरत, ऐरवत, विदेह (महाविदेह) नाम के क्षेत्र हैं उनमें । यहां यद्यपि विदेह बड़ा क्षेत्र होने से पूर्वानुपूर्वी क्रम से 'विदेहभरहेरवये' - ऐसा कहना चाहिए, लेकिन बड़े क्षेत्र की प्रधानता होती है इसलिए पश्चानुपूर्वी क्रम से 'भरहेरवयविदेहे' ऐसा उपन्यास किया गया। भरत आदि तीन होने से 'भरहेरवयविदेहेसु' यह बहुवचन प्रयोग न करके 'विदेहे' यह एकवचन-प्रयोग जो किया, यह प्राकृत भाषा की शैली के अनुसार किया, अथवा द्वन्द्व समास ३१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001721
Book TitleLalit Vistara
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size11 MB
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