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________________ कषाय और कर्म ५५ करने वाली प्रवृत्ति से अरति मोहनीय का बन्ध होता है। १२ ४. भय मोहनीय : भय उत्पन्न होना। कारागृह में कैद श्रेणिक राजा ने तलवार हाथ में लिए पुत्र को आते देखा तो भयभीत हो अँगूठी का हीरा चूसकर प्राण त्याग दिए। स्वयं भयभीत होने से अथवा अन्य को भयभीत करने से भय मोहनीय का बन्ध होता है। १३ ५. जुगुप्सा मोहनीय : घृणा पैदा होना। अशुचिमय पदार्थों अथवा कुरूपता को देखकर नाक-भौं सिकोड़ना! अभिमान वश किसी की घृणा करने से जुगुप्सा मोहनीय कर्मबन्ध होता है। एक कोढ़ी को समवसरण में आते देखकर कई व्यक्तियों को करुणा आई, किसी को कर्म स्वरूप का चिन्तन प्रारम्भ हआ, किसी को शरीर व्याधिमन्दिर है - इस सत्य का बोध हुआ, किन्तु कुछ जुगुप्सा भावग्रस्त भी हुए। ६. शोक मोहनीय : दुःखी होना शोक है। सुकोशल मुनि के दीक्षित होने के पश्चात् माता सहदेवी ने शोक संतप्त अवस्था में मृत्यु पाकर बाघन रूप में जन्म लिया। स्वयं शोक करना अथवा अन्य को दु:खी करने से शोक मोहनीय-कर्मबन्ध होता है। १५ ७. वेद मोहनीय : वेद तीन प्रकार के होते हैं - स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद। असत्य कथन एवं माया-कपट से स्त्रीवेद, कषाय मन्दता से पुरुषवेद तथा तीव्र कषाय, गुप्तांगों का विनाश करने से नपुंसकवेद का बन्ध होता है।१६ अपने मित्रों से अधिक तप करने हेतु से छल करने पर मुनि महाबल ने स्त्रीवेद बन्ध किया था। मोहनीय-कर्म की तीव्र परिणति को महामोहनीय कहा जाता है। १२. वही १३. सर्वार्थसिद्धि / अ. ६/सू. १५ १४. वही १५. सर्वार्थसिद्धि | अ. ६ / सू. १५ १६. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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