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________________ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन समवायांगसूत्र", दशाश्रुतस्कन्ध", उत्तराध्ययनसूत्र, प्रश्नव्याकरण' में महामोहनीय कर्मबंध के तीस कारण बताये गये हैंलोभ : कषाय से त्यागे हुए भोगों की पुनः अभिलाषा, जिसके कारण पाँवों पर खड़े हुए - उसी के धन की वांछा, हिंसक व्यापार करना, त्रस जीवों को मारना, जन-नेताओं की हत्या करना, मधुमक्खी झुंड को अग्नि जलाकर धुएँ की घुटन से मारना, प्रयोगों से जीवों को समाप्त करना, ग्लान आदि को औषध न देना। मान : सर्वज्ञ प्रभु की निन्दा, आचार्यादि की निन्दा, तपस्वियों को धर्मभ्रष्ट करना, मोक्षमार्ग से अन्य को विमुख करना, गुरुजन की सेवा न करना, अपने को वीतराग कहना। माया : अशुभाशय से सत्य को असत्य बताना, छल-कपट करना, अपने अकृत्य को अन्य पर आरोपित करना, तपस्वी न होते हुए अपने को तपस्वी बताना, अब्रह्मचारी होते हुए ब्रह्मचारी कहना, विद्वान् न होते हुए विद्वान् बताना। क्रोध : सदैव कलह करते रहना, उपकारियों के लिए विघ्न उपस्थित करना इत्यादि। इन तीव्र काषायिक वृत्तियों के फलस्वरूप महामोहनीय कर्मबन्ध होते हैं। (५) आयु कर्मबन्ध हेतु व कषाय स्थानांगसूत्र में कालापेक्षा आयु दो प्रकार की बताई गई है-२१ दीर्घ एवं अल्प। कषाय-मन्दता के परिणामस्वरूप अहिंसा पालन, विवेकपूर्वक कार्य-प्रवृत्ति, सत्य-भाषण, सुपात्र-दान, सेवा-परोपकार आदि कारणों से शुभ दीर्घायुबन्ध होता है। दूसरों को मानसिक पीड़ा या शारीरिक कष्ट देने से अशुभ दीर्घायुबन्ध होता है। २२ जीव हिंसा से अल्पायुष्य बंधता है। २३ १७. समवाओ | समवाय ३० / सू. १ १८. दशाश्रुतस्कन्ध दशा ९ १९. उत्तराध्ययनसूत्रवृत्तिपत्र ६१७, ६१८ २०. प्रश्नव्याकरणसूत्र २१. ठाणं | स्थान ३ / उद्देशक १ / सू. १७ से २० २२. ठाणं | स्थान ३ / उद्देशक १/ सू. १९ २३. ठाणं | स्थान ३ / उद्देशक १ / सू. १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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