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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
सरस्वती साध्वी का गर्दभिल्ल राजा द्वारा अपहरण होने पर कालिकाचार्य के द्वारा वीर सैनिक का वेश धारण किया गया था। गर्दभिल्ल राजा की हत्या कर सरस्वती को कैद-मुक्त कर कालिकाचार्य ने प्रायश्चित लिया था।
प्रत्याख्यानी क्रोध-आत्म-ज्ञान पश्चात् साधक सांसारिक कार्यों को संक्षिप्त करके श्रावक जीवन के बारह व्रत स्वीकार करता है। साधना-मार्ग पर उसके चरण बढ़ते हैं। उसके व्रत पालन में कोई बाधक बनता है, तो उसे क्रोध आने लगता है। महाशतक भगवान् महावीर के श्रावक थे। पौषधशाला में ध्यानास्थित होने पर पत्नी रेवती द्वारा उन्हें विचलित करने का बार-बार प्रयास किया जाने लगा। अन्ततः क्रुद्ध हो कर वे बोल उठे- 'रेवती! तुम्हारा रूप का अभिमान टिकने वाला नहीं है। सात दिन बाद तुम देह त्याग कर नरक में उत्पन्न होने वाली हो।' यह क्रोधोदय श्रावक व्रतधारी तक होता है।
संज्वलन क्रोध- शुद्ध स्वरूप प्राप्ति की साधना में रत मुनि को अपने दोष पर रोष होता है। श्रीमद् राजचन्द्र ने 'अपूर्व अवसर' में कहा है, 'क्रोध प्रत्ये तो वर्ते क्रोध स्वभावता...' क्रोध के प्रति ही क्रोध हो- वह संज्वलन क्रोध है। अरणिक मुनि ने अपनी भूल के प्रायश्चित में अनशन धारण किया। अपना दोष कण्टक की तरह अपने को ही चुभने लगा।
अनन्तानुबन्धी मान-आत्म-ज्ञान के अभाव में व्यक्ति देह को 'मैं' रूप मान कर उसका अभिमान करता है। प्राप्त अनुकूल संयोगों का गर्व करता है। ___अप्रत्याख्यानी मान-सम्यग्दृष्टि का देहाभिमान, पर-पदार्थों के स्वामित्व का अहंकार समाप्त हो जाता है। वह सम्यक् अर्थ में स्वाभिमानी होता है। स्वस्वरूप प्राप्ति के लिए देव-गुरु-धर्म का राग होता है, उसका गौरव होता है। सम्राट अकबर ने अन्य कवियों के समान कवि गंग को अपनी खुशामद करते नहीं देखा। एक दिन अपनी स्तुति करवाने हेतु एक समस्या-पूर्ति पद दिया'सब मिल आस करो अकबर की।' कवि गंग ने दोहे की रचना करते हुए अन्त में कह दिया, 'जिसे प्रभु पर विश्वास नहीं, वह सब मिल आस करो अकबर की।' सम्राट के रुष्ट होने की भी चिन्ता कवि गंग ने नहीं की।
प्रत्याख्यानी मान-बारह व्रतधारी श्रावक को अनन्तानुबन्धी एवं अप्रत्याख्यानी मान का उदय नहीं होता। प्रत्याख्यानी मान का उदय साधनापद्धति में विशिष्ट राग का कारण होता है। मांडवगढ़ के महामन्त्री पेथड़शाह
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