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कषाय के भेद
मान
अनन्तानुबन्धी- शैल ( पत्थर) स्तम्भ के समान ( आजीवन ) अप्रत्याख्यानी- अस्थि (हड्डी) स्तम्भ की तरह ( दीर्घकालिक ) प्रत्याख्यानावरण-दारु (लकड़ी) स्तम्भ की भाँति (अल्पकालिक ) संज्वलन- तिनिशलता ( तृण ) जैसा ( अल्पतम -कालिक )
माया
अनन्तानुबन्धी- बाँस की जड़ के समान वक्रता ( आजीवन) अप्रत्याख्यानी- मेंढ़े के सींग की तरह टेढ़ी ( दीर्घकालिक )
प्रत्याख्यानावरण- - गोमूत्र की भाँति वक्ररेखात्मक (अल्पकालिक )
संज्वलन- छिलते हुए बाँस की छाल जैसी सामान्य मुड़ी हुई ( अल्पतम- कालिक) लोभ
अनन्तानुबन्धी- कीड़ों के रक्त से बने रंग ( कृमिराज) की तरह ( आजीवन ) अप्रत्याख्यानी- गाड़ी के पहिये में लगे कीट की भाँति (दीर्घकालिक ) प्रत्याख्यानावरण- काजल जैसा ( अल्पकालिक )
संज्वलन- हल्दी के रंग समान ( अल्पतम- कालिक)
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सोलह कषाय का अंशतः विवेचन
अनन्तानुबन्धी क्रोध - अज्ञानावस्था में शरीर में अहंबुद्धि तथा पदार्थों में ममत्वबुद्धि होती है। शरीर, स्वजन, सम्पत्ति आदि में आसक्ति प्रगाढ़ होती है। प्रिय संयोगों की प्राप्ति में बाधक तत्त्व अप्रिय लगता है। स्वार्थ में ठेस लगने पर क्रोध पैदा होता है- यह अनन्तानुबन्धी क्रोध है । आत्म-तत्त्व की वार्ता अरुचिकर प्रतीत होती है - तीव्र अनन्तानुबन्धी क्रोध में ।
मन्द अनन्तानुबन्धी क्रोध में सम्यक्त्व सम्मुख भूमिका बनती है।
अप्रत्याख्यानी क्रोध - सम्यग्दर्शन का सूर्य उदित होने पर आत्म-तत्त्व का अज्ञानान्धकार नष्ट होता है। शरीर में 'मैं' की भ्रान्ति समाप्त होती है। आत्मतत्त्व का बोध होता है । समस्त जगत् के जीवों के प्रति आत्मीय भाव उत्पन्न होता है। ऐसी स्थिति में किसी के प्रति अन्याय होने पर क्रोध का जन्म होता है । यह अप्रत्याख्यानी क्रोध है ।
सम्यग्दृष्टि को देव-गुरु-धर्म का राग होता है। अतः देव-गुरु-धर्म का अपमान करने वाले के प्रति आवेश आता है। वस्तुपाल महामन्त्री ने राजा के मामा द्वारा एक बाल मुनि को थप्पड़ मारने पर उसका हाथ कटवा दिया था।
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