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________________ कषाय के भेद प्रत्युत्तर दिया। ‘जाओ! इन्हें गौशाला में ले जाओ- जो बैल लेना चाहें, दे दिया जाए।' –नृपति ने आदेश दिया। पर मम्मण सेठ को कोई बैल पसन्द नहीं आया। 'राजन मेरे बैल जैसा आपके पास एक भी नहीं'- मम्मण के शब्द सुन कर राजा चौंक गए। ‘ऐसा बैल हमारी गौशाला में नहीं है, तो हम तुम्हारा बैल देखने जरूर आयेंगे'- महाराजा श्रेणिक ने कहा। महारानी चेलना एवं मंत्री-परिवार के साथ सम्राट मम्मण सेठ के यहाँ जा पहुँचे। गृहांगण में प्रवेश किया। बैल कहीं दिखा नहीं। मम्मण अभ्यागतों को कक्ष में ले गए। परदा हटाया- भीतर का दृश्य देखते ही सबकी आँखें विस्फारित हो गई। रत्नजटित स्वर्ण निर्मित बलद जोड़ी। एक बैल का एक सींग अभी रत्नजड़ित होना शेष था। राजा ने मुँह में अंगुली दबा ली- इतना धन! और फिर इतना परिश्रम। धन्यवाद है - इस लोभ को। जितनी मजदूरी कराए उतना ही कम है। संतोष के बिना शान्ति नहीं है। नीतिशास्त्र में कहा है जो दस बीस पचास भए, शत होय हज़ार तो लाख मंगेगी, कोटि अरब खरब असंख्य, धरापति होने की चाह जगेगी। स्वर्ग पाताल को राज करूँ, तृष्णा अधिकी फिर आग लगेगी, सुन्दर इक सन्तोष बिना, शठ तेरी तो भूख कभी न भगेगी। अन्यत्र भी कहा है गौधन गजधन वाजिधन, और रतन धन खान, जब आवे सन्तोष धन, सब धन धूल समान। कषाय सोलह प्रकार का भी बताया गया है। वह निम्न प्रकारेण है-१२० १. अनन्तानुबंधी कषाय(१) क्रोध (२) मान (३) माया (४) लोभ। २. अप्रत्याख्यानी कषाय(१) क्रोध (२) मान (३) माया (४) लोभ। ३. प्रत्याख्यानावरण कषाय(१) क्रोध (२) मान (३) माया (४) लोभ। ४. संज्वलन कषाय(१) क्रोध (२) मान (३) माया (४) लोभ। कषाय के उपर्युक्त भेदों का सामान्य विश्लेषण इस प्रकार है१२०. अनन्तानुबन्ध्य प्रत्याख्यानावरण संज्वलन विकल्पाश्चैकशः क्रोध, मान-मायालोभाः... (तत्त्वार्थसूत्र/ अ. ८/ सूत्र १०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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