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________________ ३८ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन उदारतापूर्वक उनकी व्यवस्था कर दी। एक दासी कपिल को रोज आहार परोसती थी। उसके यौवन, लावण्य, चंचलता ने कपिल का मन आकर्षित कर लिया। कपिल की ओर दासी का भी मन खिंच गया। दोनों प्रणय-बन्धन में बँध गए। वसन्तोत्सव का दिन था। नगर के नर-नारी सज-धज कर सृष्टि-सौन्दर्य के पान हेतु उद्यान-भ्रमण किया करते थे। दासी का मन भी मचल उठा। नारी का मन वस्त्र, आभूषण से शृंगारित होने की भावना! कपिल के समक्ष इच्छा जाहिर की और एक मार्ग भी सुझा दिया। राजा प्रतिदिन प्रथम आशीर्वाद देने वाले ब्राह्मण को दो माशा स्वर्ण दिया करता है- वह आपको लाना है। __रात्रि का समय। करवट बदलते समय बीत रहा था। आँखों में निद्रा नहीं थी। अर्द्धरात्रि को ही ब्रह्ममुहूर्त मान कर कपिल चल पड़ा। नगर रक्षकों द्वारा कपिल को हिरासत में लेकर कारागार में डाल दिया गया। प्रातः जब राजसभा में नरपति समक्ष उपस्थित किया; तब कपिल ने अपनी सारी परिस्थिति से राजा को अवगत किया। नृपति मुस्कुरा दिए- 'हे विप्र! दो माशा ही नहीं, तुम्हारी इच्छानुरूप धन तुम्हें प्राप्त होगा। कहो! कितना चाहिए?' कपिल क्षण भर स्तब्ध रह गया। पश्चात् स्वस्थ होकर कहा- 'राजन! मुझे विचार के लिए समय अपेक्षित है।' राजवाटिका के मध्य विचाराधीन कपिल के मन में विचार सागर की तरंगों की तरह टकरा रहे हैं। कितना माँगना? दो माशा, नहीं! १०० स्वर्ण मुद्रा? नहीं! १००० स्वर्ण मुद्रा? नहीं! १ लाख स्वर्ण मुद्रा? नहीं, नहीं!! आधा राज्य? नहीं! क्या सम्पूर्ण राज्य? हाँ - हाँ यही ठीक है। तुरन्त विवेक ने लोभ को थप्पड़ लगाया। राजा की उदारता का अनुचित लाभ लेना चाहते हो। ठीक है- आधा राज्य। अच्छा - इतना चाहिए? नहीं - नहीं १०० स्वर्ण मुद्रा। क्या तुम धन-याचना के लिए इस नगर में आये थे, क्या तुम विषय पिपासा पूर्ति हेतु गुरुकुल में आये थे अथवा अध्ययन हेतु। ओ हो! कैसा मेरा लोभ? मन तत्त्व-चिन्तन की श्रेणी पर आरूढ़ हो गया और समस्त कषायों का क्षय किया। इसी प्रकार मम्मण सेठ का उदाहरण प्राप्त होता है-११९ जिसे अर्द्धरात्रि में उफनती नदी से लकड़ियाँ बाहर लाते देख श्रेणिक महाराजा दयार्द्र हो उठे और कहा- 'जो चाहिए माँग लो।' 'राजन! केवल एक बैल चाहिए'- वृद्ध ने ११९. कथा संग्रह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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