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________________ कषाय और कर्म ८७ कार्यों को त्याग देता है। उसमें श्रावक-धर्म, साधु-धर्म ग्रहण करने की इच्छा निरन्तर बनी रहती है। वह मुनियों, गुरुओं तथा चतुर्विध संघ की सेवा में सदैव तत्पर रहता है। अप्रत्याख्यान कषाय की शुक्ललेश्या-विषय-वासना का अभाव, स्नेहीजनों के प्रति अल्पतम राग-भाव, सात भयरहित, प्राप्त सामग्री में समत्व भाव युक्त दशा इस लेश्या में होती है। प्रत्याख्यान कषाय की तेजोलेश्या- प्रत्याख्यान कषाय में कृष्ण, नील, कापोतलेश्याओं का अभाव होता है। प्रत्याख्यान कषाय की तेजोलेश्या वाला गहस्थ साधक संसार, शरीर एवं भोग से विरक्त रहता है। उसमें हिंसा एवं परिग्रह अति अल्प होता है। वह श्रावक-धर्म को स्वीकार करता है। उसमें साधुधर्म ग्रहण करने की इच्छा बनी रहती है। वह उद्यमी, संकल्पी एवं विरोधी हिंसा से निवृत्त होता है तथा आरम्भी हिंसा अर्थात् भोजन आदि क्रियाओं में भी हिंसा अत्यल्प करता है। उसकी लौकिक कार्यों में अरुचि और धर्म कार्य में विशेष प्रीति होती है। प्रत्याख्यान कषाय की पद्मलेश्या- जो विशेष रूप से त्याग-वृत्ति में रहता है - वह प्रत्याख्यान कषाय की पद्मलेश्या से युक्त होता है। प्रत्याख्यान कषाय की शुक्ललेश्या- इस लेश्या में त्यागी जीवन स्वीकार करने के साथ-साथ जिसमें समत्व की उच्च-भूमिका होती है। संज्वलन कषाय की तेजोलेश्या- इस लेश्या से युक्त मुनि श्रमण होते हैं। वे संयम में रत, स्वाध्याय-ध्यान में लीन तथा परीषहों को सहन करते हैं। ___ संज्वलन कषाय की पद्मलेश्या- मन्दतम कषाय अवस्था इस लेश्या में होती है। संज्वलन कषाय की शुक्ललेश्या- जिस लेश्या में राग-द्वेष कषाय लगभग नहीं होता है, वह संज्वलन कषाय की शुक्ललेश्या है। इस प्रकार ‘भाव-दीपिका' में कषाय की अपेक्षा से लेश्या के बहत्तर भेद प्रतिपादित करते हुए उनका स्वरूप स्पष्ट किया है। 'उत्तराध्ययन' में लेश्या-परिणामों की संख्या २४३ बताई गई है२३ एवं अधिक-से-अधिक लेश्या के स्थान बताते हुए कहा गया है- असंख्य अवसर्पिणी २३. उत्तराध्ययन/ अ. ३४/ गा. २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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