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________________ कषाय: एक तुलनात्मक अध्ययन अधिक क्षमावान, निष्परिग्रही हो सकता है। अनन्तानुबन्धी कषाय के साथ मिथ्यात्व दशा होने से विपरीत धारणाएँ, वस्तु के यथार्थ स्वरूप के प्रति अज्ञान होता है। दीर्घकालीन कषाय-ग्रन्थियाँ बँधती हैं; किन्तु शुक्ललेश्या के कारण हिंसादि पापों से विरति एवं शुभ भावों में प्रवृत्ति होती है। इस त्याग, तप, क्षमा के बल पर अभव्य जीव नव-ग्रैवेयक देवलोक तक का आयु-बन्ध कर सकता है। अप्रत्याख्यान कषाय की कृष्णलेश्या - इस लेश्या से युक्त व्यक्ति तीव्र क्रोध कर लेता है, किन्तु वैर-ग्रन्थि नहीं बाँधता है। वह असत्य भाषण, चोरी, परिग्रहसंचय इत्यादि भी करता है; लेकिन अन्याय नहीं करता। उसकी स्व- स्त्री में आसक्ति होती है; पर पर - स्त्रियों के प्रति विकार भाव नहीं करता। वह विषयकषायों का सेवन करता है; किन्तु उन्हें उचित नहीं मानता। श्रेय अश्रेय, कर्तव्य - अकर्तव्य का उसे बोध होता है; पर कभी-कभी विषय कषाय उस पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। ८६ अप्रत्याख्यान कषाय की नीललेश्या - नीललेश्या कृष्णलेश्या से किंचित् उज्ज्वल है। अप्रत्याख्यान कषाय की कृष्णलेश्या वाला पूर्वापर के विचार - सहित कार्य करता है; किन्तु उसमें कुछ आलस्य रहता है। अप्रत्याख्यान कषाय की कापोतलेश्या - अप्रत्याख्यान कषाय की कापोतलेश्या वाला अकारण क्रोध नहीं करता है; किन्तु यदि कोई उसके कार्य में बाधा डाल दे, तो क्रोधाभिभूत हो जाता है। वह किसी दोषी व्यक्ति की निन्दा एवं महादोषी का पराभव भी करता है। उसे इष्ट का वियोग होने पर शोक, पराभव के प्रसंग में भय होता है। उसमें पाप प्रवृत्ति की भावना अल्प होती है एवं न्याय रूप आजीविका के लिए वह असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प, पशुपालन आदि के विषय में प्रवृत्ति करता है। वह न्यायपूर्ण आजीविका करता है। अप्रत्याख्यान कषाय की तेजोलेश्या - इस लेश्या वाले व्यक्ति में क्रोधादि कषायों की मन्दता होती है। वह राज्य, आजीविका, विवाह आदि कार्यों में उदासीन होता है। उसका पूजा-प्रभावना, तीर्थ-यात्रा, तप-संयम आदि में उल्लास-भाव होता है । संसार त्याग की, श्रावक एवं साधुधर्म ग्रहण करने की विशेष भावना उसमें होती है। हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य एवं परिग्रह की वृत्ति उसमें अल्प होती है। वह धन-व्यय करने में उदार होता है। अप्रत्याख्यान कषाय की पद्मलेश्या - इस लेश्या से युक्त व्यक्ति के क्रोधादि कषाय अत्यल्प हो जाते हैं। वह विषय, कषाय एवं आजीविका से सम्बन्धित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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