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________________ ७६ वड्डमाणचरिउ कडवक सं. पृष्ठ मूल/हिन्दो अनु. ७. राजा नन्दनके भवान्तर वर्णन-नौवाँ भव-सिंहयोनि वर्णन. २८- २९ चारणमुनि अमितकीर्ति और अमृतप्रभ द्वारा सिंहको प्रबोधन. २८- २९ सिंहको सम्बोधन. ३०- ३१ १०. भवान्तर वर्णन--(१) पुण्डरीकिणीपुरका पुरुरवा-शबर. ३२- ३३ ११. पुरुरवा-शबर मरकर सुरौरव नामक देव हुआ. विनीता-नगरीका वर्णन. ३२- ३३ १२. ऋषभदेव तथा उनके पुत्र भरत चक्रवर्तीका वर्णन. ३४- ३५ १३. चक्रवर्ती भरतका दिग्विजय वर्णन. ३४- ३५ चक्रवर्ती-भरतकी पट्टरानी धारिणीको मरीचि नामक पुत्रकी प्राप्ति. ३६- ३७ १५. मरीचि द्वारा सांख्यमतकी स्थापना. १६. मरीचिका भवान्तर वर्णन. कोशलपुरीमें कपिल भूदेव ब्राह्मणके यहाँ जटिल नामक विद्वान् पुत्र तथा वहाँसे मरकर सौधर्मदेवके रूपमें उत्पन्न. ३८- ३९ वह सौधर्मदेव भारद्वाजके पुत्र पुष्यमित्र तथा उसके बाद ईशानदेव तथा वहाँसे चय कर श्वेता-नगरीमें अग्निभूति ब्राह्मणके यहाँ उत्पन्न हुआ. ३८- ३९ वह 'अग्निशिख' नामसे प्रसिद्ध हुआ. वह पुनः मरकर सानत्कुमारदेव हुआ तथा वहाँसे चय कर मन्दिरपुरके निवासी विप्र गौतमका अग्निमित्र नामक पुत्र हआ. ४०-४१ १९. मरीचिका भवान्तर-वह अग्निमित्र मरकर माहेन्द्रदेव तथा वहाँसे पनः चय कर वह शक्तिवन्तपुरके विप्र संलंकायन का भारद्वाज नामक पुत्र हुआ. पुनः मरकर वह माहेन्द्रदेव हुआ. ४०-४१ २०. माहेन्द्र-स्वर्गमें उस देवकी विविध क्रीड़ाएँ. ४२-४३ माहेन्द्रदेवका मृत्यु-पूर्वका विलाप. ४२- ४३ माहेन्द्रदेवका वह जीव राजगृहके शाण्डिल्यायन विपके यहाँ स्थावर नामक पुत्रके रूपमें उत्पन्न हुआ. ४४-. ४५ दूसरी सन्धिकी समाप्ति, ४४- ४५ आश्रयदाता नेमिचन्द्र के लिए कविका आशीर्वाद. ४४- ४५ सन्धि ३ मगध देशके प्राकृतिक-सौन्दर्यका वर्णन. ४६-४७ राजगृह नगर का वैभव-वर्णन. वहाँ राजा विश्वभूति राज्य करता था. ४६- ४७ ३. राजा विश्वभूति और उसके कनिष्ठ भाई विशाखभूतिका वर्णन । मरीचिका जीव ब्रह्मदेव विश्वभूतिके यहां पुत्र-रूपमें जन्म लेता है. ४८-४९ ४. विश्वभूतिको विश्वनन्दि एवं विशाखभूतिको विशाखनन्दि नामक पुत्रोंकी प्राप्ति तथा प्रतिहारीकी वृद्धावस्था देखकर राजा विश्वभूतिके मनमें वैराग्योदय, ४८-४९ ५. राजा विश्वभूतिने अपने अनुज विशाखभूतिको राज्य देकर तथा पुत्र विश्वनन्दिको युवराज बनाकर दीक्षा ले ली. ५०- ५१ युवराज विश्वनन्दि द्वारा स्वनिर्मित नन्दन-वनमें विविध क्रीडाएं. विशाखनन्दिका ईविश उस नन्दन-वनको हड़पनेका विचार. ' ५०- ५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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