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________________ विषयानुक्रम ७७ ३. कडवक सं. पृष्ठ मूल/हिन्दी अनु. ७. विशाखनन्दिसे नन्दन-वनको छीन लेने हेतु विशाखभूतिका अपने मन्त्रियोंसे विचार-विमर्श. ५२- ५३ ८. मन्त्रि-वर्ग मूढ़बुद्धि विशाखभूतिको समझाता है. ५४- ५५ ९. राजा विशाखभूतिको महामन्त्री कीतिकी सलाह रुचिकर नहीं लग सकी. ५४- ५५ १०. विशाखभूतिने छलपूर्वक युवराज विश्वनन्दिको कामरूप नामक शत्रुसे युद्ध करने हेतु रणक्षेत्रमें भेज दिया. ५६- ५७ ११. विशाखनन्दि द्वारा नन्दन-वनपर अधिकार, ५६- ५७ १२. कामरूप-शत्रुपर विजय प्राप्त कर युवराज विश्वनन्दि स्वदेश लौटता है, तो प्रजाजनोंको आतुर-मन हो पलायन करते देखकर निरुद्ध नामक अपने महामन्त्रीसे उसका कारण पूछता है. ५८- ५९ उपवनके अपहरणके बदलेमें विश्वनन्दिकी प्रतिक्रिया तथा अपने मन्त्रीसे उसका परामर्श. ५८- ५९ १४. विश्वनन्दिका अपने शत्रु विशाखनन्दिसे युद्ध हेतु प्रयाण. ६०-६१ विशाखनन्दि अपनी पराजय स्वीकार कर विश्वनन्दिकी शरणमें आता है. ६०-६१ १६. विश्वनन्दि और विशाखभूति द्वारा मुनि-दीक्षा तथा विशाखनन्दिकी राज्यलक्ष्मीका अन्त. ६२-६३ ७. मथुरा नगरीमें एक गाय द्वारा विश्वनन्दिके शरीरको घायल देखकर विशाखनन्दि द्वारा उपहास, विश्वनन्दिका निदान बाँधना. ६२-६३ अलका नगरीके विद्याधर राजा मोरकण्ठका वर्णन. ६४-६५ विशाखनन्दिका जीव चयकर कनकमालाकी कुक्षिसे अश्वग्रीव नामक पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ. ६४-६५ २०. कुमार अश्वग्रीवको देवों द्वारा पांच रत्न प्राप्त हुए. ६४-६५ २१. सुरदेश स्थित पोदनपुर नामक नगरका वर्णन. ६६-६७ २२. विशाखभूतिका जीव (वह देव ) राजा प्रजापतिके यहाँ विजय नामक पुत्रके रूपमें जन्मा. ६६२३. विश्वनन्दिका जीव-देव, राजा प्रजापतिकी द्वितीय रानी मृगावतीको कोखसे त्रिपृष्ठ । नामक पुत्रके रूपमें उत्पन्न होता है. २४. एक नागरिक द्वारा राजा प्रजापतिके सम्मुख नगरमें उत्पात मचानेवाले पंचाननसिंहकी सूचना. ६८-६९ राजकुमार त्रिपृष्ठ अपने पिताको सिंह मारने हेतु जानेसे रोकता है. ७०- ७१ २६. त्रिपृष्ठ उस भयानक पंचानन-सिंहके सम्मुख जाकर अकेला ही खड़ा हो गया. ७०- ७१ २०. त्रिपृष्ठ द्वारा पंचानन-सिंहका वध. ७२-७३ त्रिपृष्ठ 'कोटिशिला' नामक पर्वतको सहजमें ही उठा लेता है. ७४- ७५ विद्याधर राजा ज्वलनजटी अपने चरको प्रजापति नरेशके दरबारमें भेजता है. ७४- ७५ ज्वलनजटीके दूतने राजा प्रजापतिका कुलक्रम बताकर उसे ज्वलनजटीका पारिवारिक परिचय दिया. ७६-७७ ३.. ज्वलनजटीके इन्दु नामक दूत द्वारा प्रस्तुत 'स्वयंप्रभाके साथ त्रिपृष्ठका विवाह सम्बन्धी प्रस्ताव स्वीकृत कर राजा प्रजापति उसे अपने यहाँ आनेका निमन्त्रण देता है. ७६- ७७ तीसरी-सन्धिकी समाप्ति. ७८- ७९ आश्रयदाता नेमिचन्द्र के लिए कविका आशीर्वाद. ७८- ७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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