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________________ ४० जहिँ फलिह-भित्ति मडिविवयाइँ स- सवत्ति-संक गय-रय - खमाहँ दृष्टान्त अपह्नुति उपमेय पर उपमानके निषेध-पूर्वक आरोप अथवा प्रकृतका निषेध कर अप्रकृतकी स्थापना द्वारा इस अलंकार की योजना की गयी । यथा पहिखिणउँ पहिउ निसण्णउँ जहिँ सरेहिँ सद्दिज्जइ । दि सहि सलिल सहद्दह णं करुणइँ पाइज्जइ ॥ ( १।३।१५-१६ ) तं अच्चरिउ ण जं पुणु थिरयर अणु-दिणु भमइ णिरारिउ सुंदर ससियर - सरिस गुणेहिँ पसाहिउ अतिशयोक्ति किसी वस्तुकी महत्ता दिखानेके लिए उसका इतना बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन करना कि जिससे लोकसीमाका ही उल्लंघन हो जाये । ऐसी स्थिति में अतिशयोक्ति अलंकार होता है । कविने देश, नगर एवं राजाओं के वर्णन-प्रसंगोंमें इस अलंकार का प्रयोग किया है । यथा- विभावना व माणचरिउ णिय रूवइँ णयणहिँ भावियाइँ । जुज्झति तियउ निय पिययमाहं ॥ अर्थान्तरन्यास जहाँपर उपमेय एवं उपमानके सामान्य धर्मके बिम्ब प्रतिबिम्ब भावका चित्रण किया जाये तथा वाचक शब्दका उल्लेख न हो, वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है । यथा— यह अइ- पियवा हो पिय वीरवइ वि सिद्धी । अराएँ नाइविहाएँ मण-वारे सिद्धी ।। ( १।५ घत्ता ) हराएँ विराएँ तणुरुहु समयण काएँ । अरुणच्छवि उप्पाउ रवि णं सुर- दिसिहिँ पहाएँ ॥ ( ११६ घत्ता ) १।४।१५-१६ ) मणि चितिय करुणय - कप्परुक्खु परिविद्धिहे मइ-जल-सिंचणेण Jain Education International कित्ति महीले निज्जिय जसिहर । तं जि वित्तु पूरिय गिरि-कंदर । ( २।२।६-७ ) मंडलु अरिगणु व महाहिउ । ( २1२1९ ) णं पर्याणिय चोज्जु सव्वत्थवि रमणीए । सहुँ पवर- सिरीए कोस दंड धरणीए । ( ६।३ घत्ता ) कारण के बिना ही जहाँ कार्य की उत्पत्ति हो जाये, वहाँ विभावना अलंकार होता है । यथा जसभूसिय समहीहर रसेण, अवि फुल्ल-कुंदज्जइ- सम-जसेण । ( ११५१९ ) णव जलय- जाल सम मणहराहँ । खुर-धाय-जाउ रउ हयवराह दोहं वि बलाहँ हुउ पुरउ भाइ र वारइ नियतेण णाइ ।। ( ५1१०1८-९ ) सामान्य या विशेष द्वारा कथनका समर्थन करते समय अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है । कविने इस अलंकारका कई स्थानोंपर प्रयोग किया है । यथा अणु जणवयो विलुप्त-दुक्खु । णिज्जेण विरसु को होइ तेण ॥ ( १।५।११-१२ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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