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________________ प्रस्तावना ४१ व्यतिकर उपमानकी अपेक्षा उपमेयमें गुणाधिक्यताके आरोपकी स्थितिमें व्यतिकर-अलंकार होता है । कविप्रियकारिणीके वर्णन-प्रसंगमें उसे 'सरूव जित्त अच्छरा' तथा ( ९।४।४ ) 'ससद्द जित्त कोइला' ( ९।४।६) - कहता है। परिसंख्या इस अलंकारका प्रयोग उस समय किया जाता है जब किसी वस्तु या व्यापारका कथन अन्य स्थलोंसे निषेध करके मात्र एक स्थानपर ही किया जाये। कवि कुण्डपुरके वर्णनमें परिसंख्या-अलंकारका प्रयोग करते हुए कहता हैखेत्तेसु खलत्तणु हयवरेसु जहिँ वंधणु मउ मह गयवरेसु । कुडिलत्तणु ललणालय-गणेसु थड्ढत्तणु तरुणीयण-थणेसु । पंकट्ठिदि सालि-सरोरुहेसु जड-संगहु जहिं मह-तरुवरेसु । वायरण-णिरिक्खय जहिँ सुमग्ग गुण-लोव-संधि-दंदोवसग्ग ।। ( ९।१।१२-१५) एकावलि पूर्व वणित वस्तुओंकी जहाँ बादमें वर्णित वस्तुओंसे विशेषण-भावसे स्थापना या निषेध किया जाये वहाँ एकावली अलंकार होता है। कविने इस अलंकारका प्रयोग अवन्ती-देशके वर्णन-प्रसंगमें किया है । यथाजहिं ण कोवि कंचण-धण-धण्णहिँ मणि-रयणिहिं परिहरिउ खण्णहिं। तिण दव्वु व वंधव-सुहि-सयणहिँ जिण-भत्तिए अइ-वियसिय-वयणहि। जहिँ ण रूव-सिरि-विरहिय-कामिणि कल-मयंग-लीला-गइ-गामिणि । रूव सिरि वि ण रहिय-सोहग्गे आमोइय अमियासण-वग्गे । सोहग्गु वि णय-सीलु णिरुत्तउ सीलु ण सुअण पसंस वि उत्तउ । णिज्जल-णई ण जलु वि ण सीयलु अकुसुमु तरु वि ण फंसिय-णहयलु । तहिं उज्जेणिपुरी परि-णिवसइ जहिँ देवाह मि माणइँ हरसइ ।। ( ७।९।६-१२) स्वभावोक्ति स्वाभाविक स्थिति-वर्णन प्रसंगोंमें स्वभावोक्ति-अलंकारका प्रयोग होता है। कविने प्रियकारिणीत्रिशलाकी गर्भावस्थाका चित्रण उक्त अलंकारके माध्यमसे इस प्रकार किया हैहुव पंडु गंड तहो अणुकमेण । णावइ गब्भत्थ-तणय-जसेण । चिरु उवरु सहइ ण वलित्तएण तिह जिह अणुदिणु परिवड्ढणेण । अइ-मंथर-गइ-हुव साभरेण गब्भत्थ-सुवहो णं गुण-भरेण ।। सु-णिरंतर सा ऊससइ जेम सहसत्ति पुणुवि णीससइ तेम ।। मेल्लइ णालसु तह तणउ पासु जे भाइ-सहिउँ णाई दासु । तण्हा विहाणु तं सा धरंति गब्भत्थ सुवण माणसु हरति । पीडियण मणिच्छिय-दोहलेहि संपाडिय-सुंदर सोहलेहि ॥ ( ९।९।१-७ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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