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________________ ३० वड्डमाणचरिउ निवासस्थान, द्वीपोंके नाम तथा एकेन्द्रिय एवं विकलत्रय-जीव-शरीरोंके प्रमाण (९), समुद्री जलचरों एवं अन्य जीवों की शारीरिक स्थिति (१०), जीवकी विविध इन्द्रियों एवं योनियोंके भेद-वर्णन (११), विविध जीव-योनियोंके वर्णन (१२), सर्प आदिकी उत्कृष्ट-आयु तथा भरत, ऐरावत क्षेत्रों तथा विजयार्द्धपर्वतका वर्णन (१३), विविध क्षेत्रों एवं पर्वतोंका प्रमाण (१४), पर्वतों एवं सरोवरोंका वर्णन (१५), भरतक्षेत्रका प्राचीन भौगोलिक वर्णन एवं नदियों, पर्वतों, समुद्रों एवं नगरोंकी संख्या (१६), द्वीप, समुद्र और उनके निवासी (१७), भोगभूमियोंके विविध मनुष्योंकी आयु, वर्ण एवं वहाँ की वनस्पतियोंके चमत्कार (१८), भोगभूमियोंमें काल-वर्णन तथा कर्म-भूमियोंमें आर्य, अनार्य (१९), कर्मभूमियोंके मनुष्योंकी आयु, शरीरकी ऊंचाई तथा अगले जन्ममें नवीन योनि प्राप्त करनेकी क्षमता (२०), विभिन्न कोटिके जीवोंकी मृत्युके बाद प्राप्त होनेवाले उनके जन्मस्थान (२१)तिर्यग-लोक एवं नरक-लोकमें प्राणियोंकी उत्पत्ति. क्षमता एवं भूमियोंका विस्तार (२२), प्रमुख नरकमियाँ एवं वहाँके निवासी, नारकी-जीवोंकी दिनचर्या एवं जीवन (२३), नरकके दुःखोंका वर्णन (२४-२७), नारकियोंके शरीरोंकी ऊँचाई तथा उनकी उत्कृष्ट एवं जघन्य आयुका प्रमाण (२८), देवों के भेद एवं उनके निवासोंकी संख्या (२९), स्वर्गमें देव-विमानोंकी संख्या (३०), देव-विमानोंकी ऊँचाई (३१), देवोंको शारीरिक स्थिति ( ३२ ), देवोंमें प्रविचार( मैथन )-भावना (३३), ज्योतिषी-देवों एवं कल्प-देवों एवं देवियोंकी आयु तथा उनके अवधिज्ञानके द्वारा जानकारीके क्षेत्र (३४), आहारकी अपेक्षा, संसारी-प्राणियोंके भेद (३५), जीवोंके गुणस्थानोंका वर्णन (३६), गुणस्थानारोहणक्रम एवं कर्म-प्रकृति योंका नाश (३७)। सिद्ध जीवोंका वर्णन (३८), जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष-तत्त्वोंका वर्णन (३९)। भगवान् महावीरका कार्तिक कृष्ण चतुर्दशीकी रात्रिके अन्तिम प्रहरमें पावापुरीमें निर्वाण (४०), एवं, कवि और आश्रयदाताका परिचय तथा भरत वाक्य (४१) । [ दसवीं सन्धि ] २. परम्परा और स्रोत पुरातन-कालसे हो श्रमण-महावीरका पावन चरित कवियोंके लिए एक सरस एवं लोकप्रिय विषय रहा है। तिलोयपण्णत्ती' प्रभति शौरसेनी-आगम-साहित्यके बीज-सूत्रों के आधारपर दिगम्बर-कवियों एवं आचारांग आदि अर्धमागधी आगम-ग्रन्थों के आधारपर श्वेताम्बर कवियोंने समय-समयपर विविध भाषाओंमें महावीरचरितोंका प्रणयन किया है। दिगम्बर महावीर-चरितोंमें संस्कृत-भाषामें आचार्य गुणभद्रकृत उत्तरपुराणान्तर्गत 'महावीरचरित' ( १०वीं सदी ), महाकवि असगकृत वर्धमानचरित्र (११वीं सदी ), पण्डित आशाधरकृत त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्रम् के अन्तर्गत महावीर-पुराण, (१३वीं सदी ), आचार्य दामनन्दीकृत पुराणसार संग्रह के अन्तर्गत महावीरपुराण, भट्टारक सकलकीति कृत वर्धमानचरित (१६वीं सदी) एवं पद्मनन्दीकृत वर्धमानचरित ( अप्रकाशित, सम्भवतः १५वीं सदी ) प्रमुख हैं। १. जोवराज ग्रन्थमाला शोलापुर (१६४३,५३ ई.) से दो खण्डों में प्रकाशित, सम्पादक : प्रो. डॉ. ए. एन. उपाध्ये तथा डॉ. हीरालाल जैन । २. भारतीय ज्ञानपीठ, काशी ( १९५४ ई.) से प्रकाशित। ३. रावजी सखाराम दोशी, शोलापुर ( १९३१ ई.) से प्रकाशित । ४. माणिकचन्द्र दि. जैन ग्रन्थमाला, बम्बई (१९३७ ई.) से प्रकाशित । ५. भारतीय ज्ञानपीठ, काशी ( १६५४-५५) से दो भागों में प्रकाशित । ६. भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली ( १६७५ ई.) से प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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