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________________ प्रस्तावना दाक्षिणात्य' कवियोंमें केशव, पद्म, आचण्ण एवं वाणीवल्लभकृत महावीर चरित उल्लेखनीय हैं। अपभ्रंश-भाषामें आचार्य पुष्पदन्तकृत महापुराणान्तर्गत वड्डमाणचरिउ ( १०वीं सदी ), विबुधश्रीधरकृत वड्ढमाणचरिउ ( वि. सं. ११९० ), महाकवि रइधूकृत महापुराणान्तर्गत महावीरचरिउँ एवं स्वतन्त्र रूपसे लिखित सम्मइजिणचरिउ (१५वीं सदी), जयमित्रहलकृत वड्ढमाणकव्व ( अप्रकाशित, १४-१५वीं सदीके आस-पास ), तथा कवि नरसेनकृत वड्ढमाणकहा (१६वीं सदी ) प्रमुख हैं। जूनी गुजरातीमें महाकवि पदमकृत महावीर-रास ( अप्रकाशित १७वीं सदी ) तथा बुन्देली-हिन्दीमें नवलशाहकृत वर्धमानपुराण ( १९वीं सदी ) प्रमुख हैं। ___ श्वेताम्बर-परम्परामें अर्धमागधी प्राकृतागमोंमें उपलब्ध महावीर-चरितोंके अतिरिक्त स्वतन्त्र रूपमें प्राकृत-भाषामें लिखित श्री देवेन्द्रगणिकृत 'महावीरचरियं' (१०वीं सदी), श्री सुमतिवाचकके शिष्य गुणचन्द्रकृत 'महावीरचरियं' ( १०-११वीं सदी ) तथा देवभद्रसूरिकृत 'महावीरचरियं'' तथा शीलांकाचार्य कृत 'चउप्पन्नमहापुरिसचरियं के अन्तर्गत वड्ढमाणचरियं ( वि. सं. ९२५ ) प्रमुख हैं। अपभ्रंश-भाषामें जिनेश्वरसूरिके शिष्य द्वारा विरचित महावीरचरिउ'' महत्त्वपूर्ण रचना है। संस्कृत-भाषामें जिनरत्नसूरिके शिष्य अमरसूरिकृत 'चतुर्विशति जिनचरित्रान्तर्गत' 'महावीरचरितम्" ( १३वीं सदी ), हेमचन्द्राचार्यकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरितान्तर्गत महावीरचरित ( १३वीं सदी ) तथा मेरुतुंगकृत महापुराणके अन्तर्गत महावीरचरितम् (१४वीं सदी ) उच्चकोटिकी रचनाएं हैं। उक्त वर्धमानचरितोंमें-से प्रस्तुत 'वडढमाणचरिउ' की कथाका मूल स्रोत आचार्य गुणभद्रकृत उत्तरपुराणके ७४वें पर्वमें ग्रथित महावीरचरित्र एवं महाकवि असगकृत वर्धमानचरित्र है। यद्यपि विबुध श्रीधरने इन स्रोत-ग्रन्थोंका उल्लेख 'वढमाणचरिउ' में नहीं किया है, किन्तु तुलनात्मक अध्ययन करनेसे यह स्पष्ट है कि उसने उक्त वर्धमानचरित्रोंसे मूल कथानक ग्रहण किया है। इतना अवश्य है कि कवि श्रीधरने उक्त स्रोत-ग्रन्थोंसे घटनाएँ लेकर आवश्यकतानुसार उनमें कुछ कतर-ब्योंत कर मूल कथाको सर्वप्रथम स्वतन्त्र अपभ्रंश-काव्योचित बनाया है । गुणभद्रने मधुवन-निवासी भिल्लराज पुरुरवाके भवान्तर वर्णनोंसे ग्रन्थारम्भ किया है जबकि असगने श्वेतातपत्रा तथा विबुध श्रीधरने सितछत्रा नगरीके राजा नन्दिवर्धनके वर्णनसे अपने ग्रन्थारम्भ किये हैं। गुणभद्र द्वारा वर्णित सती चन्दनाचरित, राजा श्रेणिकचरित' एवं अभयकुमारचरित, राजा चेटक एवं रानी चेलनाचरित," जीवन्धरचरित,° राजा श्वेतवाहन,' जम्बूस्वामी,२ १. भारतीय ज्ञानपीठसे प्रकाश्यमान ।। २. माणिक चन्द्र दि. जै प्र., बम्बई ( १९३७-४७) से प्रकाशित। ३. भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली (१९७५ ई.) से प्रकाशित ( सम्पा. डॉ.राजाराम जैन) ४. भारतीय ज्ञानपीठसे प्रकाश्यमान, (सम्पा० डॉ. राजाराम जैन)। ५. रइधु ग्रन्यावलोके अन्तर्गत जोवराज ग्रन्थमाला शोलापुरसे शीघ्र ही प्रकाश्यमान । ६. भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्लीसे शीघ्र ही प्रकाश्यमान । ७. दि. जैन पुस्तकालय. सूरतसे प्रकाशित । ८. जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर ( वि. सं. ११७३) से प्रकाशित । ६. देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्वार फण्ड, बम्बई (वि.सं. १६६४) से प्रकाशित । १०. दे. भारतीय संस्कृतिमें जैनधर्म का योगदान ( भोपाल, १६६२ ई.) ले. डॉ. हीरालाल जैन, पृ. १३५ । ११. प्राकृत टैक्स्ट सोसाइटी, वाराणसी (१९६१ ई.) से प्रकाशित । १२. दे. भा. सं. में जै. का योगदान, पृ. १५८ ।। १३. गायकवाड ओरियण्टल सीरीज, बड़ौदा, (१६३२ ) से प्रकाशित । १४. जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर ( १९०६-१३ ई.) से प्रकाशित । १५. दे. भा. सं. में जैन. का योगदान, पृ. १६६ । १६-१८. दे. उत्तरपुराणका ७४वाँ पर्व । १६-२१. वही, ७५वा पर्व । २२. वही, ७६वाँ पर्व। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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