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________________ asमाणचरिउ कनकमालाकी कुक्षिसे अर्धचक्रीके लक्षणोंवाला अश्वग्रीव नामका पुत्र हुआ ( १८-१९ ) । एक बार जब वह गुफा - गृह में ध्यानस्थ था, तभी उसे देवों ने ज्वलन्तचक्र, अमोघशक्ति, झालरवाला छत्र, चन्द्रहास-खड्ग तथा सुप्रचण्ड - दण्ड प्रदान किये ( २० ) २४ कविने इस कथानकमें यहाँ थोड़ा-सा विराम देकर दूसरा प्रसंग उपस्थित किया है। उसके अनुसार सुरदेश स्थित पोदनपुर नामके नगरमें राजा प्रजापति राज्य करते थे । उनकी जयावती और मृगावती नामकी दो भार्याएँ थीं । संयोगसे विशाखभूतिका जीव रानी जयावतीकी कोखसे विजय नामक पुत्रके रूपमें उत्पन्न हुआ (२१-२२ ) । और विश्वनन्दिका जीव रानी मृगावतीकी कोखसे त्रिपृष्ठ नामक अत्यन्त पराक्रमी पुत्रके रूपमें उत्पन्न हुआ (२३) । एक दिन प्रजाजनों ने राजदरबारमें आकर निवेदन किया कि "नगर में एक भयानक पंचानन - सिंहने उत्पात मचा रखा है । अतः उससे हमारी सुरक्षा की जाये ।" राजा प्रजापति उस सिंहको जैसे ही मारने हेतु प्रस्थान करने लगे, वैसे ही त्रिपृष्ठने उन्हें विनयपूर्वक रोका और उनकी आज्ञा लेकर वह स्वयं वन की ओर चल पड़ा। वनमें हड्डियोंके ढेर देखकर त्रिपृष्ठ पंचानन – सिंहके रौद्र रूपको समझ गया और उसे शीघ्र ही मार डालने के लिए लालायित हो उठा । वनमें जैसे ही सिंह त्रिपृष्ठ के सम्मुख आया उसने उसे पकड़कर तथा अपनी ओर खींचकर जमीनपर पटक मारा। देखते ही देखते उसके प्राण पखेरू उड़ गये (२४ - २६) । त्रिपृष्ठ विजेता के रूपमें कोटिशिलाको खेल ही खेलमें ऊपर उठाता हुआ अपनी शक्तिका प्रदर्शन कर अपने नगर लौटा जहाँ उसका भव्य स्वागत हुआ ( २८ ) । एक दिन विजयाचलकी दक्षिण-श्रेणीमें स्थित रथनूपुरके विद्याधर- नरेश ज्वलनजटीका दूत राजा प्रजापतिके दरबार में आया । दूतने राजा प्रजापतिको उनके पूर्वज ऋषभदेव, उनके पुत्र बाहुबलि एवं भरतका परिचय देकर कच्छ - नरेश राजा नमि पर सम्राट् ऋषभदेवकी असीम अनुकम्पाका इतिहास बतलाते हुए अपने स्वामी विद्याधर राजा - ज्वलनजटी तथा उनके पुत्र अर्ककीर्ति तथा पुत्री स्वयंप्रभाका परिचय दिया और निवेदन किया कि ज्वलनजटी अपनी पुत्री स्वयंप्रभाका विवाह राजकुमार त्रिपृष्ठके साथ करना चाहता है । ज्वलनजटीका प्रस्ताव स्वीकार कर प्रजापतिने उसे पुत्री सहित अपने यहाँ आनेका निमन्त्रण भेजा । दूत उस निमन्त्रणके साथ वापस चला गया । वहाँ उसने राजा ज्वलनजटीको समस्त वृत्तान्त कह सुनाना ( २९ - ३१ ) । [ तीसरी सन्धि ] राजा प्रजापति द्वारा प्रेषित शुभ सन्देश एवं निमन्त्रण-पत्र पाकर ज्वलनजटी प्रसन्नता से भर उठा । वह राजकुमार अर्ककीर्ति एवं स्वयंप्रभाके साथ राजा प्रजापतिके यहाँ पोदनपुर पहुँचा । उसे आया हुआ देखकर राजा प्रजापति भी फूला नहीं समाया । ज्वलनजटीको वह बहुत देर तक अपने गलेसे लगाये रहा । ज्वलनजटी के संकेतपर अर्ककीर्तिने भी प्रजापतिको प्रणाम किया (१) । उधर प्रजापतिके दोनों पुत्रों - विजय एवं त्रिपृष्ठने भी ज्वलनजटोको प्रणाम किया ( २ ) । दोनों पक्षोंके पारस्परिक स्नेह मिलन के बाद वैवाहिक तैयारियाँ प्रारम्भ हुईं । घर-घरमें युवतियां मंगलगान करने लगीं । सामूहिक रूपसे हाथोंके कोनोंसे पटह एवं मृदंग पीटे जाने लगे । मोतियोंकी मालाओंसे चौक पूरे जाने लगे । चिह्नांकित ध्वजा - पताकाएँ फहरायी जाने लगीं और श्रेष्ठ कुल-वधुएँ नृत्य करने लगों (३) । संभिन्न नामक ज्योतिषीने शुभ-मुहूर्त में दोनों का विवाह सम्पन्न करा दिया । विजयार्द्धकी उत्तरश्रेणीमें स्थित अलकापुरी के विद्याधर राजा शिखीगल तथा उसकी रानी नीलांजनाके यहाँ विशाखनन्दिका वह जीव - हयग्रीव नामक पुत्रके रूपमें उत्पन्न हुआ, जो कि आगे चलकर चक्रवर्तीके रूप में विख्यात हुआ । उसने जब यह सुना ( ४ ) कि ज्वलनजटी - जैसे विद्याधर राजाने अपनी बेटी स्वयंप्रभा एक भूमिगोचरी राजा प्रजापतिके पुत्र त्रिपृष्ठको ब्याह दी है, तो वह आग-बबूला हो उठा । उसने अपने भीम, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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