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________________ शब्दानुक्रमणिका ३२३ णिकाय-निकाय, समूह | २।१४७ णियहिउ-निजहित २।९।११ णिग्गउ-निर्गत ( निकल गया ) १।१७।१२ णियाणु-निदान ३।१७।१० णिग्गम-निर्गम १।३।१३ णियंत-/ दृश् + शतृ ( देखता हुआ ) २।२१।४ णिग्गय-निर्गत २।५।४, १०।२।११ णिरग्गल-निरर्गल १०।२५।१३ णिगोय-निगोद १०।१०।१६ णिरवज्ज-निरवद्य, निर्दोष ६७।१ णिच्च-नित्य ( निगोद) १०।४।३ णिरसिवि-निरसित ६।१६।३ णिच्चल-निश्चल २।२।५, ३।१।१० णिरसिय-निरसित ( नष्ट कर दिया ) १२१०१३, णिच्चुच्छव-नित्योत्सव ३३२७ २।९।१५ णिच्चितिउ-निश्चिन्त १।१२।२ णिरह-निर् + अघ १११११३ णिच्छउ-निश्चय (पूर्वक ) १।१५।४, १।१७।२ णिराउल-निराकुल २।१११५ णिच्छव-निश्चय ५।८।१३ णिराउह-निरायुध १०॥३८॥६ णिज्जरा-निर्जरा १०।३९।२१ णिरारिउ-नितराम् २।२१७ णिज्जरु-निर्जर ( देव) २।११।३ णिरिक्खणत्थु-निरीक्षणार्थ २१७७ णिज्जिय-निर्जित १।१।१५, १।६।८, १८९, णिरु-नितराम् । १।१६।१ २।२०।१० णिरुत्त -निरुक्त, नितराम् १११४।६ णिज्जंतु-निर्जन्तुक ८।१४।८ णिरुद्ध-णिरुद्ध ( नामक मन्त्री ) ३।१२।९ णिज्झाइय-निर्ध्यात ( ध्यान करता था) ११५।२ णिरुद्ध-दिट्ठि-निरुद्ध-दृष्टि ३।४।१० णिड्डहेवि-/णिड्डह ( निर्दह ) + इवि णिरुवद्ध उ-निरुपद्रव (बिना किसी उपद्रवके) (जलाकर) ९।२२।१ ३।२।१२ णिण्णासिय-निर्नाशित ( नष्ट कर दिया ) ३।४८ णिरंतर-निरन्तर, सदैव २।११।४ णित्तुल-निस्तुल १०५।१३ णिलउ-निलय (गह ) १।८।११ णित्तुलउ-निस्तुल ( अनुपम ) २।९।१७, ५।२३।१९, णिव्वाण-ठाण-निर्वाण स्थान १०।१४।१३ ८८५ णिव्वाणु-ठाणु-निर्वाण स्थान १।९।१० णिहावस-निद्रावश ८।१।१० णिवाहण-निर्वहण ४।२०।१३ णिइंदु-निर्द्वन्द्व ३।१।१४ णिव्वूढ-नियूंढ २।५।१३ णिप्पहु-निस्पृह ६।१७।९ णिवइपुत्त-नृपतिपुत्र १४१०६ णिब्भय-निर्भय १०।३८।६ णिव-चिंधह-नृप-चिह्न २०६६ णिब्भासण-भाषा रहित ( गूंगा) १०।१७।१४ णिव वयणु-नृपवचन २।५।५ णिब्भंत-निर्धान्त २।१०७ णिवसइ-/ निवस् इ (रहता है) ११४१ णिम्मलयर-निर्मलतर १।२।२, ३।३।२ णिवसिरि-नपश्री २।२।१० णिम्मलयरु-निर्मलतर २।१३।६ णिवसेविणु-/ निवस् + एविणु (निवास कर) णिम्महिउ-निर् + मथित ( उन्मूलित) १।१७।५ २।२२।३ णिम्मिय-निर्मित २।२११८ णिवसंत-/ निवस् + शतृ २।७।१२ णिम्मिवि-निर्मित ११३।१ णिवारिवि-निवारित २।१९।१ णिय-निज ( अपना) १।३।६ णिविट्ठ-निविष्ट १।१२।३ णियकुल-निजकुल ( अपना कुल) १।१७।२ णिविठ्ठ-निविष्ट २।४।१ णियड-निकट ४।१।१३ णिवित्ति-निवृत्ति ३।२।११ णियबुद्धि-निज-बुद्धि २।२।३ णिविसाय-निविषाद (विषाद रहित) १०३८।६ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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