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परिशिष्ट १ (ख)
भविसयत्तकहा प्रशस्ति
आदि भाग
११
ससिपह जिग चरणई सिव सुइ करणई पणविवि णिम्मल-गुण भरिउ । आहासमि पविमलु सुअ-पंचमि-फलु भविसयत्तकुमरहो चरिउ ॥ xxx x
१।२ सिरि चंदवार-णयर-ट्टिएण
जिण धम्मकरण उक्कट्ठिएण । माहुर-कुल-गयण तमीहरेण
विबुहयण सुयण-मण-धण हरेण । णारायण-देह समुब्भवेण
मण-वयण-काय-णिंदिय भवेण । सिरि वासुएव गुरु-भायरेण
भवजलणिहि णिवउण कायरेण । णीसेसें सविलक्ख गुणालएण मइवर सुपट्ट णामालएण। विणएण भणिउ जोडेवि पाणि भत्तिए कइ सिरिहरु भवपाणि । इह दुल्लहु होइ जीवह णरत्त णीसेसहँ संसाहिय परत्तु । जइ कहव लहइ दइयहो वसेण
चउगइ भमंतु जिउ सहरसेण । ता विलउ जाइ गब्भे वि तेमु । वायाहउ णहें सरयब्भु जेमु । अह लहइ जम्मु
रोयहिं पीडिज्जइ दुह गिहेहिँ। घत्ता-जइ णिद्दिय मायरि अय खामोयरि अवहरेइ णियमणि अणसु ।
पय पाण-विहीणउ जायइ दीणउ तासो णवि जीवेइ सिसु ॥२॥
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हउँ आयइ मायइ मह मइए कप्पयरूव विउलासए सयावि जइ एयहिं विरयमि णोवयारु ता किं भणु कइ मइ आयएण पउ जाणि वि सुललिय पयहिं सत्थु । महु तणिय माय णामेण जुत्त
सई परिपालिउ मंथर-गइए । दुल्लहु रयणु व पुण्णेण पावि । उग्धाडिय सिव सउ हलय वारु । जम्मण-मह पीडा-कारएण । विरयहि बुहयण मणहरु पसत्थु । पायडिय जिणेसर भणिय सुत्त ।
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